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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ऑ०१९भित्तपरिनामरणं दुविहं २७-२८५ | भवसिद्धिए ण पुच्छा २२-२५२सू० |मिनमुत्तो नरपसु रा० २० भत्तिं च कुणसु तिब्वं | भंजिय परीसहचमू . २७-६१० | मिनिंदियपंचिंदिय: जी० २१ भई सुबहुसुयाणं २७-१३७८ | भंतेत्ति कालेणं भंते कुमारे २६-८सू० |भिंगा भिंग्गप्पभा चेव मज्ञा०२२ भयब केहिं लिंगेहिं ,, दिव्या देविड्डी० कहिं० २०-२६सू० भुत्तूणवि भोगसुहं ॥५ ॥ भरहस्स चत्तारि एगिंदि० २५-६९सू० भालुकीए करणं २७-४३५ भुयगपुरोहियडको भरहे अ इत्थ देवे महिड्डीए २५-७२सू० भावनमुक्कारविवज्जिआई. २७-३५४ | भूईगहणं जह नकयाण भवगहणभमणरीणा. २७-२७७ भावाणुरायवेमाणुराय० २७-३३९ | भूए अस्थि भविस्संति भवण. इसिवालिय० २७-२२३२ भाविज भावणाओ . २७-१८७४ भूयत्येणाहिगया. भवण कप्पवईणवि २७-११२७ | भासएणं पुच्छा २२-२४७सू० | मेदबिसय संठाणे भवणवई दो इंदा , | भासगपरित्तपजत्त 'भोगंकरा भोगवई भवणवइविमाणवईणं भोगाणं परिसंखा भवणवइवाणमंतर २७-२०९० भासाको य पभवति २२-१९२ | भोमेजवणयराणं २७-११२२ भासा णं भंते किमादीमा ४२२-१६५सू० मउए निहुअसहावे भवण० सब्बिड्डी परिय० २७-१२३१ भासासरीरपरिणाम मए कयं इमं कर्म भवणेहिं व वणेहि य २७-१८११. भासुरसुवनसुंदर मगतिहिहि तो भयसयसहस्सदुलहे २७-१४४० भिक्खाचरणत्ताणं २७-८७७ ममि बंधवार्ण भवसंसारे सवे २७-१८४ | भणिमणिभणंतसई -२७-५६१ | मझे वेअहस्स उ RSEX REPRERNEAREERXXX २१-१५il २७-१६१८ चं०/२४ २५-५० जं० २५ २७-१६२७ नि. २६ २७-१७४७ प्रकी०२७ २७-५८९ २७-७४५ २२-१२१ २२-२२३ २७-६८ २७-२२३५ २७-७८२ २७-२५७ २७-३३५ २७-१८१९ - २५-२ ॥५७1 For Private and Personal Use Only
SR No.020842
Book TitleUpang Prakirnak Sutra Vishaykram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Pracharak Samstha
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1948
Total Pages183
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_index
File Size10 MB
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