Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ गर्भा शकुन्तला के सौन्दर्य को देखकर लालायित हो उठा है और उसकी अन्दर से भरे बर्फ वाले छोड़ सकता है ।" यहां अयोग्य ( पात्र ) करार वाला डाकू कहा है ।' दशा उस भौंरे के सदृश हो गई जो प्रभात के समय कुन्द (पुष्प) को न तो भोग सकता है और न ही तक कि शार्ङ्गरख दे तो दुष्यन्त को शकुन्तला के लिए दिया और उसे शकुन्तला का चोरी-चोरी स्पर्श करने शकुन्तला की बात में विश्वास न करने वाले दुष्यन्त को शार्ङ्गरव व्यंग्य में कहता है कि जिसे जन्म से लेकर आज तक दुष्टता नहीं सिखाई गई, उस ( शकुन्तला ) का वचन प्रमाण रहित है और जो विद्या मानकर दूसरे को धोखा देने का अध्ययन करते हैं वे सत्यवादी हो सकते हैं ।" और दुष्यन्त द्वारा सम्पूर्ण स्त्री जाति पर अविश्वास, प्रत्युत्पन्नमति एवं चालाकी के आरोप लगाने पर स्वयं शकुन्तला क्रोध से भर उठती है- " मैं यहां बहुत स्वच्छन्दचारी (आवारा) बनाई गई हूं, जो पुरु-कुल के विश्वास से इनके, जिनके मुंह में शहद और हृदय में विष है, हाथ में पड़ गई हूं।"" इन उपर्युक्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि "अनाघ्रातपुष्पम" शकुन्तला दुष्यन्त को हृदय दे बैठी या यूं कहूं कि एक राजा ने मुग्धा तापस कन्या को अपनी विलासी वृत्ति का भोग बनाया है । और कहने में हम यह कह लें कि कर्त्तव्य से च्युत होने से दुर्वासा के शाप की वजह से दुष्यन्त शकुन्तला को भूल गया है । पर मेरा मानता है कि प्रेम मंगलकारी होता है और यहां तक कि "ढाई अक्खर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय" तो निसर्ग शकुन्तला को ही यह ढाई अक्खर अंगूठी में क्यों ले डूबा ? शकुन्तला की भूल तो सिर्फ इतनी है कि उसने सच्चे दिल से प्रेम किया है और प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है । प्रेम तो कुदरत की देन है । शकुन्तला की तो उम्र भी है, पर दुष्यन्त तो परिणीत है, राजा है और कई प्रेम प्रकरणों के दौर से गुजर चुका है। फिर भी कवि ने मुख्यतः दुर्वासा शाप एवं शकुन्तलाप्रत्याख्यान प्रसंग में विदूषक की अनुपस्थिति योजना से दुष्यन्त के चरित्र की रक्षा करने का जरूर प्रयत्न किया है साथ ही इस कृति में ऐसे कई प्रसंग ( उपर्युक्त ) रख दिए हैं जो राजा दुष्यन्त की चरित्रगत दुर्बलताओं को उजागर करते हैं । यदि शकुन्तला को उसके कर्त्तव्य से च्युत होने का शाप मिला है तो कर्तव्य से च्युत तो दुष्यन्त पहले हुआ है कि उसने एक राजा हो करके तपोवन में प्रवेश कर कण्व मुनि की अनुपस्थिति में इस मुग्धा तापस कन्या को अपने प्रेम जाल में फंसाया है । दूसरी दुर्वासा ऋषि इतने ज्ञानी है कि शकुन्तला किसी के विचारों तो उन्हें यह ज्ञान होना भी संभव था कि वह किस व्यक्ति के खोई हुई है ? क्यों खोई हुई है ? तो उस दुष्यन्त को शाप देना चाहिए था कि इस मुग्धा के उसके प्रेम में पड़ने से ही उनका अतिथि सत्कार नहीं हुआ है । बात यह है कि में १७४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International की परन्तु For Private & Personal Use Only खोई हुई है विचारों में www.jainelibrary.org

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