Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ होते हैं । आंसू का हृदय के साथ पूर्ण योग होता है। हृदय ही आंसू के रूप में बहने लगता है । वह बहाव कितना सशक्त होता है उसे महाप्रज्ञ या महावीर जैसे व्यक्ति ही समझ सकते हैं। ११. दूत की कुलीनता एवं उसके सामर्थ्य पर विश्वास-प्रायः सभी गीति-काव्यों में दौत्यकार्य का निरूपण होता है । गीति-काव्य का पात्र विरहवेदना के कारण साधारणीकरण को भूमिका में पहुंचकर चेतनाचेतन विभेद में प्रकृतिकृपण हो जाता है । वहां पशु जगत्, रात्री, मेघ या आंसू आदि से दौत्य कार्य करवाया जाता है । वहां शङ्का का स्थान नहीं होता है । दूत की कुलीनता एवं उसके सामर्थ्य पर पूर्ण विश्वास होता है। महाकवि कालिदास का यक्ष मेघ को दूत बनाता है। उसका मेघ धूम, ज्योति-सलिल-मरुतादि का सन्निपात मात्र नहीं बल्कि वह इन्द्र का प्रधान-पुरुष है, प्राणियों का जीवनदाता है। उसका जन्म श्रेष्ठ पुष्करावर्त कुल में हुआ है। यक्ष को पूर्ण विश्वास है कि उसका दूत उसके सन्देश को उसकी प्रियतमा के पास ले जाएगा तथा प्रिया के कुशल-क्षेम के द्वारा प्रातः कुन्द-प्रसव के समान शिथिल यक्ष-जीवन को भी सहारा देगा ।“ अश्रुवीणा की नायिका अपने आंसू को ही दूत बनाती है । आपत्काल में आंस के अतिरिक्त उसके पास कुछ अवशेष था ही कहां? उसका दूत समर्थ है, पवित्र है । उसको पाकर अकेला व्यक्ति भी विपत्ति के भार से मुक्त हो जाता है । उसमें अद्भुत शक्ति है। वह अपने दूत से कहती है—हे आंसू ! यह ठीक है कि यति-पति पवित्र हैं और पवित्रता में विश्वास करते हैं। तुम भी कम पवित्र नहीं हो। उस प्रभु को विश्वास दिलाना कि हमारा जन्म भी पवित्र स्रोत से हुआ है.---- स्मर्तव्यं तद्यतिपतिरसी पूतभावैकनिष्ठो नेयस्तस्मादृजुतमपथैः पावनोत्स प्रतीतिम् ।। साहाय्यार्थं हृदयमखिलं सार्थमस्तु प्रयाणे, तस्योदघाटः क्षणमपिचिरं कार्यपाते न चिन्त्यः ।। २१, कवि दौत्यकार्य मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि पर करवाता है। दूत के उच्चकुल का वर्णन कर उसके सामर्थ्य की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया जाता है। हनुमान को उनके सामर्थ्य की याद नहीं दिलायी जाती तो वे अलध्य समुद्र को कैसे लांघ जाते ? कालिदास का यक्ष और महाप्रज्ञ की चन्दनबाला भी इसी पद्धति का आश्रयण करती है। १२. बिम्बात्मकता---यह गीति-काव्य का प्रमुख वैशिष्ट्य है। कवि वर्णनीय विषय का अपनी कला के द्वारा स्पष्ट चित्र अंकित कर देता है। अश्रुवीणा में बिम्बात्मक-चारूता पद-पद में विद्यमान है । श्रद्धा और तर्क का बिम्ब द्रष्टव्य है---- .१८४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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