Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 60
________________ भावों का वर्णनकर पाठक पर अपनी रचना की मौलिकया का भ्रम डाल दे वह भ्रामक, अन्यों के भावों को खींचकर अपनी रचना करने वाला कर्षक, अन्यों के भावों को नया रंग देकर आकर्षक बनाने वाला चुंबक, प्राचीन कवियों के भावों को पूर्णतया अपना लेने वाला द्रावक तथा नवीन अर्थ का प्रादुर्भावक चितामणि कवि कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति आदि - चिंतामणि - कवि माने जाते है । आचार्य भीखण को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि वे नवीन अर्थ किंवा नवीन मार्ग के प्रतिष्ठापक थे । इस प्रकार स्वामी जी नवीन पंथ के प्रवर्तक क्रांतिकारी -माचार्य, उत्कृष्ट महाव्रती एवं संयम-वीर्य - शील-संपन्न साधु तो थे ही साथ ही उभयकवि, काव्यविद्या स्नातक, महाकवि घटमान, प्रायोजनिक, सारस्वत, परिवर्त्तक एवं चितामणि- कवि भी थे । भिक्षु-ग्रंथ - रत्नाकार के दोनों खंडों में संग्रहित लगभग ५५ रत्न उनकी काव्य- कला एवं उत्कृष्ट प्रतिभा के निदर्शन हैं । तेरापंथ - प्रबोध का एक गीत उनके पूर्ण व्यक्तित्व को उजागर कर देता है चर्चावादी, कुशल प्रशासक, मीमांसक, संगायक हा, पुरुष - परीक्षक और समीक्षक नव्य नीति निर्णायक हा, हो सन्तां ! प्रकट्यो कोई एक नयो उद्योतकार हो । संदर्भ १. काव्यमीमांसा, बिहार राष्ट्र भाषा परिषद पटना, द्वितीय संस्करण १९६५, पृ० १६ २. काव्यप्रकाश १.१ ३. ध्वन्यालोक पृ० ४२२ ४. काव्यमीमांसा पृ० १५ ५. ईशावास्योपनिषद् ८ ६. संस्कृत - हिन्दी कोश (आप्टे) पृ० २५९ ७. काव्यप्रकाश १.२ पर वामन झलकीकर विरचित सुखबोधिनी टीका ८. काव्यमीमांसा, अध्याय ५ पृ० ४२ ९. भिक्षु दृष्टांत, जैन विश्व भारती से प्रकाशित, १०. स्वामी भिक्षु विचित नवपदार्थ पृ० १ २ ११. भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर दो भाग, सम्पादक आचार्यश्री तुलसी, प्रकाशक-जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा कलकत्ता - १, १९६० पृष्ठ संख्या प्रथम भाग ९६२, द्वितीय भाग ७२८ ( इस ग्रंथ में स्वामी भीखणजी द्वारा राजस्थानी भाषा में बिरचित खण्ड १९, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only २१९ www.jainelibrary.org

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