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है।" प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो भावनात्मक स्तर पर अपना संतुलन बनाए रखता है, सहिष्णु बना रहता है, वह बाह्य निमित्तों से प्रभावित नहीं होता।" आचार्य श्री तुलसी ने उदघोष दिया -'निज पर शासन फिर अनुशासन' ।२८ इससे सहज ही अपना अनुशासन जागता है नियंत्रण की क्षमता बढ़ती है तो आदमी शक्तिशाली बन जाता है ।२९ जब व्यक्ति अपने संवेगों पर नियंत्रण करना सीख लेता है तो आत्महत्या जैसी जटिल समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है ।
हमारे भीतर दो प्रणालियां काम कर रही हैं। एक है रासायनिक प्रणाली और दूसरी है विद्युत्-नियंत्रण प्रणाली । ये दोनों प्रणालियां आदमी के आचार और व्यवहार का नियंत्रण करती हैं। यदि रासायनिक प्रणाली को समझ लिया जाए तो जीवन का क्रम बदल सकता है। रासायनिक प्रणाली में अन्तःस्रावी ग्रन्थियां काम करती है। उनके स्राव रक्त में मिलते हैं और आदमी के व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। अनुप्रेक्षा और प्रेक्षा के माध्यम से हम उन ग्रन्थियों को प्रभावित कर सकते हैं, स्रावों को बदल सकते हैं।
इसी प्रकार विद्युत-नियंत्रण का परिवर्तन होता है। हमारे स्नायुसंस्थान में पर्याप्त मात्रा में विद्य त है। उसी विद्य त के कारण हमारी सक्रियता बनी रहती है। उन विद्य त के प्रकम्पनों को बदलने पर आदतें बदल जाती हैं ।
ज्योतिकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र और शांतिकेन्द्र-इन चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान करने का अर्थ है नियंत्रण की शक्ति को विकसित करना। जैसे-जैसे ध्यान की गहराई बढ़ती है, नियंत्रण की सहज क्षमता बढ़ती जाती है। ज्योति केन्द्र पर सफेद वर्ण का ध्यान तीन महीने तक निरंतर करने से पिनियल और पिच्यूटरी ग्रन्थि सक्रिय होती है और उससे नियंत्रण की शक्ति का विकास होता है ।
सारांश में कहा जा सकता है कि परिवर्तन के लिए मस्तिष्क के नव-निर्माण की अत्यन्त आवश्यता है । यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इसका अनुभव करे । अपने जीवन को प्रयोगात्मक बनाएं तो समाज में उभरने वाली ज्वलन्त समस्याओं का समाधान हम स्वयं अपने भीतर खोज सकते हैं ! स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार रूप दे सकते हैं । सबका हित, सबका विकास, 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का उद्घोष पुनः व्यवहार में आ सकता है और मनुष्य का क्रूरतापूर्ण आचरण बन्द हो सकता है।
संदर्भ १. मैं कुछ होना चाहता हूं, पृ० १२६
खंड १९, अंक ३
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