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कोई नहीं जानता । इस स्थिति में दो ही उपाय बचते हैं-सह-अस्तित्व और समन्वय । समन्वय करो अर्थात् मैं जो समझ रहा हूं, मैं जो कह रहा हूं और मैं जिसे सत्य मान रहा हूं, वह सत्य है किन्तु दूसरा जो समझ रहा है, कह रहा है, या जिसे सत्य मान रहा है, वह भी सत्य होना चाहिए । उसकी अपेक्षा को मुझे समझना चाहिए । सापेक्षता के द्वारा समन्वय फलित होता है। जहां समन्वय है, वहां सह-अस्तित्व आ ही जाता है ।" नाना विचारों और नाना वादों की समस्या को सुलझाने का यह है एक समाधान ।" छोटे-से-छोटे व्यक्ति को, अपने नौकर को अपने कर्मचारी को, अपने किसी व्यक्ति को, एक मनुष्य की दृष्टि से देखना, चैतन्य की दृष्टि से अनुभव करना, यह है समता की दृष्टि ।" जहां साम्यभाव का विकास होता है वहां समस्याएं निरस्त हो जाती हैं ।
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वर्तमान में चारों ओर आतंकवाद बढ़ रहा है, भय बढ़ रहा है । ऐसी विकट परिस्थितियों का समाधान ढाई हजार वर्ष पूर्व ही भगवान् महावीर ने दे दिया था । महावीर ने समाज के संदर्भ में कहा - 'शस्त्रों का निर्माण मत करो, उनका व्यवसाय मत करो उनको सज्जित मत करो, उनका दान मत करो ।' व्यक्ति के संदर्भ में कहा, 'उस चित्त को बदलो, जो शस्त्रों का निर्माण करता है । उस चित्त को बदलो जो जंजीरों का निर्माण करता है । 'अप्पणासच्च मेसेज्जा, मेति भूएस कप्पए स्वयं सत्य खोजो और सबके साथ मैत्री करो । सत्य की खोज करो और उसकी निष्पत्ति होगी मैत्री २२ मैत्री का सुख चौबीस घंटा साथ में रहता है । सोता है तब भी वह जागता रहता है । वह निरन्तर साथ ही रहता है, छोड़ता । कौन प्रभु है, मैं नहीं जानता, छोड़ता २१
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किंतु मंत्री का प्रभु
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दायित्व का बोध, मानवीय मूल्यों भी आवश्यक है ।' इसके
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यथार्थ में शिक्षा का मूल
व्यक्ति में समाज के प्रति अपने का विकास तथा व्यक्तिगत चरित्र का विकास लिए शिक्षा अपनी अहं भूमिका अदा करती है उद्देश्य है-मन का संतुलन, मन की शान्ति, मन का निर्विकल्प होना । इस ओर लोगों ने कभी ध्यान ही नहीं दिया । शिक्षा जगत् में भी यह उद्देश्य तिरोहित हो रहा है। पूरे शिक्षा जगत् पर हम ध्यान दें ।
आज व्यक्ति पढ़
लिखकर अच्छा वैज्ञानिक बन जाता है । विशेषज्ञ बन जाता है, फिर भी वह लड़ाई फंसा रहता है. आत्महत्या कर लेता है । परिस्थितियों से घबराना कायरता है । अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर वह तत्व है, जो जीवन-संग्राम में हारी
इंजीनियर या डॉ० बन जाता है, करता है, निन्दा और ईर्ष्या में यह क्यों ? यह बड़ा प्रश्न है : २५ अपेक्षा इस बात की है कि इन मुकाबला किया जाए । पुरुषार्थ बाजी को भी विजय में बदल देता
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तुलसी प्रज्ञा
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कभी भी साथ नहीं कभी साथ नहीं
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