Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 102
________________ संशोधन, वगेरेनी पत्रिका । प्रकाशक-कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्म शताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि, अहमदाबाद । सम्पर्क:हरि वल्लभ भायाणी, २५/२ विभानगर, सेटेलाईट रोड, अहमदाबाद-१५ । मूल्य-१० रुपये। प्रस्तुत पत्रिका संकलनकार के शब्दों में--"मुख्यत्वे गुनरातमां (के क्वचित् अन्यत्र) जैन मुनिवर्यो, संशोधन संस्थाओं अने विद्वानों द्वारा जे कोई ग्रंथ- संपादन कार्य चालतुं होय तेने लगती संक्षिप्त माहिती, भाषा, इतिहास, सांस्कृतिक परंपरा वगेरेने लगता चाली रहेल संशोधन कार्य नी माहिती, कोई नवा संशोधनात्मक मुद्दा ने लगती हूंकी नोंध, वगेरेनो समावेश करवान लक्ष्य राख्यं छे।"-मुख्यत: गुजरात प्रान्त के लिए है और इसीलिए संभवतः इसकी भाषा भी गुजराती रखी गई है। पत्रिका के पहले अंक में के० आर० चन्द्र, ह० भायाणी, नारायण कंसारा और बलवंत जानी के लेख प्राकृत-अपभ्रंश भाषा विषयक हैं और सभी भाषा प्रेमियों के लिए परम उपयोगी हैं। आदरणीय शीलचंद्र विजय और कनुभाई शेठ के लेख भी अभिनव सूचनाएं मुहिय्या करते हैं। वर्तमान संशोधन-शीर्षक से दी गई जानकारी तो पूर्णतः अनूठी है। ऐसी जानकारी का प्रसार अत्यन्त आवश्यक है-इसे शोध जगत् का प्रत्येक विद्वान् स्वीकार करेगा। संकलन और प्रकाशन के लिए कोटि-कोटि साधुवाद । ५. प्राकृत एवं जैन विद्या शोध-संदर्भ-(परिशिष्ट) संपादक, कपूरचंद जैन, प्रकाशक-श्री कैलाशचन्द्र जैन स्मृति न्यास, खतौली (उ.प्र.)२५१२०१ पृ०-१६, निःशुल्क । डॉ० कपूरचंद जैन द्वारा प्रकाशित बिब्सियोग्राफी ऑफ प्राकृत एण्ड जैन रीसर्च, द्वितीय संस्करण १९९१ की समीक्षा 'तुलसी प्रज्ञा' खण्ड १७ अंक ३ के अंग्रेजी विभाग में छपी है। प्रस्तुत प्रकाशन उसी का परिशिष्ट है । इसमें डॉ० जैन ने १४५ शोध-प्रबन्धों की जानकारी और उपलब्ध कराई है। उनका यह सतत प्रयास निःसंदेह स्तुल्य है । -परमेश्वर सोलङ्की खण्ड १९, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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