________________
सांप्रतकालीन युद्ध के कारणों में दो कारण तो वे ही हैं जो ऊपर बतलाये गये हैं, परन्तु पहले कारण से अर्थात् स्त्री के हेतु से युद्ध आधुनिक समय में कम ही सुनने में आते हैं। उसके स्थान में अब एक अन्य ही कारण प्रचलित हो गया है। वह है, अपने सिद्धांतवाद या मत विशेष का प्रचार। यद्यपि वास्तविक सत्य सिद्धान्त एवं मत का प्रचार अत्यावश्यक है और प्रत्येक मनुष्य के हृदय में सत्य धर्म, सिद्धान्त या मत की अमिट छाप का लगना भी जरूरो है, परन्तु वह उपदेश शिक्षा तथा अनवद्य प्रचार प्रद्धति के द्वारा, हृदय-परिवर्तन करके ही किया जाना अभीष्ट है।
इसके विपरीत सत्य सिद्धान्तों एवं विचारों के प्रचार के लिए भी जो कलह, युद्ध या प्राणनाशकारी शास्त्रादिक का प्रयोग करता है, वह निश्चय ही धर्म को उसके उच्च स्थान से गिराने वाला और संसार शान्ति को भंग और विनाश करने वाला होता है । भगवान् महावीर जो सत्य धर्म के महान् प्रणेता और तत्कालीन परिस्थितियों में, ऐतिहासिक दृष्टि से, एक महान् क्रान्तिकारी विचार प्रवर्तक के रूप में दुनिया में प्रकट हुए थे। उन्होंने केवल उपदेश से व अपने विशुद्ध आचरण के आदर्श को जनता के समक्ष उपस्थित करके तथा निर्वद्य प्रचार पद्धति को काम में लाकर ही उस हिंसायुग में अहिंसा धर्म को विश्वव्यापी बनाया था न कि जोर-जुल्म, विग्रह, संग्राम, आर्थिक प्रलोभन या बल प्रयोग से ।
जबरदस्ती या आर्थिक प्रलोभन से चोर की चोरी, हिंसक की हिंसा, व्यभिचारी का व्यभिचार दूर करना 'धर्म प्रचार करना' न कहा जाकर 'अधर्मप्रचार' की कक्षा में आ जाता है और अन्त में वही अशान्ति या युद्ध का कारण बन जाता है। वर्तमान जगत के फॉसिज्म, नाजिज्म, बोलसेविज्म आदि वादों को इसी श्रेणी में लिया जा सकता है। जिन वादों, शासन-सत्ता व धर्मों का अस्तित्व और प्रचार, प्रतिशोध और हिंसा तथा पशुबल के आधार पर होता है वे संसार में चिरस्थायी एवं वास्तविक शान्ति की स्थापना नहीं कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त वर्तमान कालीन युद्धों के कुछ अन्य कारण भी हैं । हम केवल दो ही कारणों का उल्लेख करते हैं यथा
खण्ड १९, अंक ३
२२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org