Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 67
________________ इच्छुक सज्जन शान्ति के इस शुभ सन्देश को दत्त चित्त होकर सुनेगा, मनन करेगा और जीवन के प्रत्येक कार्य में अवलम्बन करते हुए न केवल अपनी आत्मा को ही शान्ति प्रदान करेगा प्रत्युत साथ-साथ विश्व-शांति के प्रचार में भी सहायक होगा।' ___ आचार्य श्री ने सरदारशहर की उस जनसभा को “शांति" की व्याख्या उसके भेद और विश्व-शांति के लिए कुछ सार्वभौम उपाय भी बतलाए । उन्होंने कहा कि शांति उस आलाद का नाम है जिससे आत्मा में जागृति, चेतनता, पवित्रता, हलकापन और मूल स्वरूप की अनुभूति होती है। एक वह भी शांति, संसार में कही जाती है जो भौतिक (पोद्गलिक) इष्ट वस्तु प्राप्ति के संयोग से क्षणिक शारीरिक एवं मानसिक परितृप्ति के रूप में प्राणी को अनुभव में आती है परन्तु वह शांति-अशांति की कारणभूत होने से वास्तविक शांति नहीं है। आचार्यश्री ने वास्तविक शांति के लिए महाव्रत, व्रत और सम्यक्त्व की व्याख्या प्रस्तुत की। प्राणातिपात विरमण व्रत, मृषावाद विरमण व्रत, अदत्तादान विरमण व्रत, मैथुन विरमण व्रत और परिग्रह विरमण व्रत-पांच महाव्रत बताए। - व्रत पालन में पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत बताए और उनका खुलासा किया। उन्होंने कहा कि अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षा व्रतों को पालन करने से ही वास्तविक शांति प्राप्त होती है । उन्होंने सम्यक्त्व की भी व्याख्या की और विश्वशांति के लिए नौ उपाय बताए । मापने कहा कि त्रिधर्म--प्रोटेस्टेन्ट, केथोलिक और यहूदी-के घोषणापत्रों में जिन सात सिद्धांतों का उल्लेख है वे सभी सांसारिक प्रवृति से संबंध रखते हैं और जनमुनि होने से उनके प्रति हम अपनी सम्मति प्रदर्शित नहीं कर सकते। आचार्यश्री द्वारा विश्वशांति के लिए सुझाये गये ९ सार्वभौम उपाय इस प्रकार हैं १. प्रथम विश्व भर में अहिंसा का प्रचार किया जाय और हिंसा के प्रति जनसाधारण के हृदय में घृणा-हार्दिक घृणा उत्पन्न की जाय । 'स्वजीवन की तरह ही दूसरों को भी अपना जीवन वल्लभ है-न कि मरण'--इसका पाठ पढ़ाया जाय जिससे शांति का बीजारोपण हो सके। २. क्रोध, अभिमान, दम्भ और असंतोष ये चारों ही अशांति के मूल हैं । जितने ही विग्रह जगत् में हैं वे सब कषाय-चतुष्क के ही २२६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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