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और यहूदी सम्प्रदायों के प्रमुखों द्वारा प्रकाशित एवं मान्य विश्वशांति की घोषणा को ग्रेट ब्रिटेन का यह ईसाई और यहूदी परिषद् हृदय से स्वागत करता है और तत्रान्तर्गत निहित सिद्धांतों के प्रति अपनी सहमति प्रकट करता है । वर्गों के पारस्परिक संबंधों में जनता के सामाजिक जीवन में तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों का प्रयोग करने पर जोर देना इस परिषद् के उद्देश्यों के सर्वथा अनुकूल है ।
इस परिषद् का दृढ़ विश्वास है कि शांति तथा शत्रुओं में सद्भावना के प्रतिष्ठापन, युद्ध और युद्ध जनित हानियों का मूलोच्छेदन, रचनात्मक कार्य करना और सद् विश्वास के नवयुग का प्रवर्तन करने के लिए प्रार्थना और प्रयत्न करना समस्त धार्मिक व्यक्तियों का परम कर्तव्य है । प्रत्येक व्यक्ति के स्वत्वों के प्रति विशेषतया निर्धन, निर्बल और अनुन्नत व्यक्तियों के लिये और समस्त मानव-समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना रखने के लिए, समस्त विवेकी पुरुषों और स्त्रियों की शक्ति का समुचित प्रयोग किया जाना परमावश्यक है । चर्च और सिनागोग का कर्त्तव्य है कि वे अपने अनुयायियों को न केवल इसके लिए प्रोत्साहित ही करें अपितु राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य लोकोपकारी साधनों में ऐसी भावना अनुप्राणित करें जिससे कि सुखद सांसारिक व्यवस्था को स्थापित किया जा सके ।
धार्मिक भीत्ति के अभाव में चिरस्थायी शांति स्थापित नहीं हो सकती है । वर्तमान संसार के आर्थिक और राजनीतिक ढांचे की अपेक्षा चर्च और सिनागोग प्राचीनतर एवं उच्चतर अंतर्राष्ट्रीय एवं सार्वभौमिक संस्था होने के कारण ऐसे संकट काल में दृढ़तापूर्वक अपने विचारों को प्रकट करने की अधिकारिणी हैं । वे ऐसे ईश्वरीय सिद्धांतों की भीत्ति पर स्थापित है जिन पर सामाजिक न्याय अवस्थित रहना चाहिए ।
राजनीतिक संस्थाओं का पुनस्संगठन का पुनः उचित प्रारंभ, राष्ट्रों की एकता, अंतर्निर्भरता और हितकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का पुनः प्रस्थापन, प्रतिनिधि राजनीतिज्ञगणों और व्यवस्थापिका सभाओं का प्रमुख उद्देश्य रहेगा । इसके साथ-साथ राजनीतिज्ञगणों की योजनाओं और कार्यों को धर्म की कसौटी पर कसने तथा न्याय, दया तथा शांति से उनका सामञ्जस्य तो है इस पर नियंत्रणात्मक दृष्टि रखने के उत्तरदायित्व में समस्त ईसाई और यहूदी जन पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे |
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तुलसी प्रज्ञा
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