________________
३४-१-२१=५५ ग्रंथों का संकलन है।
इस संग्रह में महाकाव्य, खंडकाव्य, गीतकाव्य, चरित्रकाव्य के अतिरिक्त राजस्थानी काव्य, चौपई, ढाल, रास, वखांण, चोढालियो आदि काव्यविधाएं हैं । रसमयता एवं भावप्रवणता के अतिरिक्त सशक्त उपदेशात्म
कता का समाश्रयण किया गया है। १२. काव्यमीमांसा अ० ५ पृ० ४१ १३. तत्रैव पृ० ४८ १४. भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर में अनेक फुटकर रचनाएं संकलित हैं १५. भारतीय साहित्य शास्त्रकोश-डा० हीरा, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी १६. तत्रैव अकादमी पटना १७. तेरापंथ प्रबोध-जैन विश्व भारती गीत संख्या ३ १८. नंदीसूत्र १९. काव्यमीमांसा अध्याय ४ पृ० ३० २०. भारतीय साहित्यकोश पृ० ३६८ २१. तत्रैव पृ० ३६८ २२. काव्यमीमांसा पृ० १६० २३. तेरापंथ प्रबोध गीत संख्या ७४
२२०
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org