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अपने कर्तव्य में जागरूक नहीं होते उन्हें सफलता नहीं मिलती है। ९. यद् दुर्भेद्यप्ति मिरनिचयो नास्ति तादृक् त्रिलोक्याम् ।।२८॥
चाटुकार जैसा कोई दूसरा दुर्भध निविड़ अन्धकार तीन लोक में भी
नहीं होता है। १०. त्राणं यस्मात् भवति न च भूःक्षीणमूलान्वयानाम् ।।३०।।
जिनकी वंश परम्परा विलुप्त हो चुकी है उन्हें पृथ्वी भी त्राण नहीं
दे सकती है। ११. यन मूकानां न खलु भुक्ने क्वापि लभ्या प्रतिष्ठा ।।३१।।
मूक-जनों को संसार में प्रतिष्ठा नहीं मिलती है। १२. कश्चिच्चित्रो भवति भुवने यन्महात्म-प्रभावः ॥३५।।
संसार में महात्माओं का अद्भुत प्रभाव होता है। १३. सोत्साहास्तं परमपरतो योगमाप्त्वा तरन्ति ।।३६।।
उत्साही व्यक्ति दूसरों का पर्याप्त सहयोग पाकर सभी बाधाओं को
पार कर जाते हैं। १४. प्रारब्धव्यो लघुरथ गुरूर्वा विधिः संविमृश्य ।३९॥
कार्य छोटा हो या बड़ा, उसका प्रारम्भ विचार पूर्वक ही होना
चाहिए। १५. यन्नोपेक्ष्या ध्रुवमतिथयः सङ्गमार्थाः प्रबुद्धः ।।४०।।
प्रबुद्ध व्यक्ति मिलने के लिए आए हए अतिथियों की उपेक्षा नहीं
करते। १६. चिन्तापूर्व कृतपरिचया एव सख्यं वहेरन् ॥४१॥
सोच विचार कर मैत्री करने वाले ही उसका निर्वाह कर पाते हैं। १७. नासंभाव्यं किमपि हि भवेद पूतवंशीदयानाम् ।।५।।
पवित्रता में जन्म पाने वालों के लिए कोई कार्य असम्भव नहीं होता
इस प्रकार "अश्रु वीणा" एक श्रेष्ठ गीति-काव्य है ।
सन्दर्भ १. गीत-गोविन्द ३.१ २. शिशुमालवध महाकाव्य ४/१७ ३. इनसाइक्लोपीडिया क्रिटेनिका खण्ड १२, पृ० १८१ ४. तत्रैव खण्ड १२, पृ०१८१ ५. अश्रु वीणा १ ६. तत्रैव ४ ७. मेघदूत २/२१
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तुलसी प्रज्ञा
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