Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ रात्रि भोजन-विरमण वत: विभिन्न अवधारणाएं साध्वी सिद्धप्रज्ञा नाणस्स सारं आयारो' ज्ञान का सार है-आचार-यह कथन आचार की गरिमा को उजागर करता है । आचार के पांच प्रकार है-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य । रात्रि भोजन विरमण का चारित्राचार में समावेश होता है । चारित्राचार के तेरह भेद है--पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति। आचारचूला' स्थानांग भगवती ज्ञातृधर्मकथा और प्रश्नव्याकरण में जहां-जहां प्रव्रज्याग्रहण या अन्तिम आराधना-आलोचना के प्रसंगों में पांच महाव्रतों का उल्लेख है, वहां रात्रि भोजन विरमण का स्वतंत्र रूप से कोई उल्लेख नहीं है। किंतु आचारचूला' और प्रश्नव्याकरण में अहिंसा महाव्रत की पांच भावनाओं में एक भावना है---आलोकितपान भोजन जो रात्रि भोजन विरमण का अर्थ लिए हुए है। सर्वप्रथम सूत्रकृतांग में पांच महाव्रत के साथ रात्रिभोजन विरमण की स्वतंत्र व्यवस्था प्राप्त होती है 'परमा महव्वया अक्खाया सराइभोयणा'8- भगवान महावीर ने रात्रि भोजन विरमण सहित पांच महाव्रतों का निरूपण किया। समवायांग में प्रतिपादित आचार के अठारह स्थानों में पांच महाव्रतों के पश्चात् रात्रि भोजन विरमण को छठा व्रत गिनाया गया है---- . वयछक्कं कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं । पलियंक निसेज्जा य सिणाणं सोहवज्जणं ।। दसवैकालिक सूत्र में भी यही गाथा निर्यढ है, किंतु चूर्णिकार अगस्त्यसिंह और जिनदासगणी तथा वृत्तिकार हरिभद्र ने इसे नियुक्ति गाथा (२६८) माना है ।" इस सूत्र के चतुर्थ अध्ययन में पांच महाव्रतों के पश्चात् स्वतंत्र रूप से यह छठे व्रत के रूप में प्रतिपादित है.---'अहावरे छ8 भंते ! वए राईभोयणाओ वेरमणं ।' 'इच्चेयाइं पंचमहव्वाई राईभोयणवेरमणछट्टाई१२ इसी सूत्र के तीसरे अध्ययन में रात्रिभोजन की गणना बावन अनाचारों में की गई है। खण्ड १९, अंक ३ २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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