Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ धर्म का प्रतिपादन किया और भगवान् महावीर ने शिष्यों की बुद्धिक्षमता को जानकर स्त्रीत्याग और रात्रिभोजन विरति इन दोनों को स्वतंत्र स्थान दिया --- ब्रह्मचर्य को अपरिग्रह महाव्रत से तथा रात्रिभोजन विरति को अहिंसा महाव्रत से पृथक कर दिया - यह आचार शास्त्रीय विकास है । संदर्भ १. आचारचूला १५ / ४२ २. स्थानांग ५ / १ ९/६२ ३. भगवती २ / ६६; १५/१०९,१६५ ४. ज्ञातृधर्मकथा १/१/२०४ ५. प्रश्नव्याकरण ६ / ६ ६. आचारचूला १५/४४ ७. प्रश्नव्याकरण ६/१६/२० ८. सूत्रकृतांग १ । । ५६ ९. दशवेकालिक ६१७ १०. दशवैकालिक अगस्त्य चूर्णि पृ १४४; जिनदासचूर्णि पृ २१६; हारि " भद्रीयवृत्ति, पत्र १९६ ११. दशवं कालिक ४ / सूत्र १६, १७ १२ . वही ३/२ १३. उत्तराध्ययन १९ / ३०, ३० / २ १४. वही २३ / २३ : चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुनी ॥ २३/८७ : पंचमहव्वयधम्मं पडिवज्जइ भावओ पुरिमस्स पच्छिमम्मी, मग्गे तत्थ सुहाव १५. नंदी गाथा ७ १७. आवश्यकसूत्र ४ / ३,८,९, ५/२ १६. आवश्यक नियुक्ति ३४० उप्पण्णम्मि अणते महत्वया पंच पण्णवए । १८. मूलाचार गाथा ३, ३५ १९. चारित्र पाहुड़ ३१ २०. तत्त्वार्थसूत्र ७/४ २१. सर्वार्थसिद्धि ७/१/३४३ २२. विशेषावश्यक भाष्य १२३९-१२४५, १८२९ २३. दशवेकालिक अगस्त्यचूर्णि पृ० ८६ २४. दशवैकालिक जिनदासचूर्णि पृ १५३; हारिभद्रीय वृत्ति पत्र १५० २५. सप्ततिशत स्थान गाथा २८७ खण्ड १९, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only २०५ www.jainelibrary.org

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