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समराच्चकहा : एक धर्मकथा
सुश्री निर्मला चोरडिया
प्राकृत आगम साहित्य में धार्मिक आचार, आध्यात्मिक तत्त्व चिंतन तथा नीति और कर्तव्य का प्रणयन कथाओं के माध्यम से किया गया है । वेदों और पालि त्रिपिटक की भांति जैनों के अर्ध-मागधी आगम ग्रन्थों में भी छोटी-बड़ी सभी प्रकार की अनेक कहानियां मिलती हैं। उनमें दृष्टांत, उपमा, रूपक, संवाद एवं लोक कथाओं द्वारा संयम, तप और त्याग का विवेचन किया गया । जैनागमों के नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि एवं टीका ग्रंथों में तो अपेक्षाकृत विकसित कथा-साहित्य के दर्शन होते हैं 1
___ कथा के भेदों का निरूपण करते हुए आगमों में अकथा, विकथा तथा कथा-ये तीन भेद किए गए हैं। इनमें कथा उपादेय है, शेष त्याज्य । विषय की दृष्टि से चार प्रकार की कथाएं होती हैं- अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा । जैनाचार्यों ने अधिकतर धर्मकथा को उपादेय माना है। जैन कथाओं का उद्देश्य जैन आचार-विचार अर्थात् कर्मवाद संयम, व्रत, उपवास, दान, पर्व, तीर्थ आदि के माहात्म्य को प्रकट करना है।
समराइच्चकहा--जो प्राकृत कथा साहित्य का सशक्त ग्रन्थ है, आचार्य हरिभद्रसूरि ने लगभग ८ वीं शताब्दी में चित्तौड़ में इस ग्रंथ की रचना की थी। यह एक धार्मिक काव्य है । कथा के माध्यम से धर्मोपदेश देना इसका उद्देश्य है । इसलिए इसमें कथारस गौण और धर्मभाव प्रधान है। आत्मज्ञान, संसार की नश्वरता, विषय-त्याग, वैराग्य भावना, श्रावकों के आचार आदि का प्रतिपादन तथा नैतिक जीवन की उन्नति के लिए आदर्शों की योजनाइस कृति के मुख्य विषय हैं। कथा के माध्यम से प्राणी की राग-द्वेष और मोहात्मक प्रवृत्तियों के जन्म-जन्म व्यापी संस्कारों का जो सजीव चित्रण किया है, वह अपने भाप में अनूठा है। इस कथाग्रन्थ में दो ही आत्माओं के नौ मानवभवों का विस्तृत एवं सरल वर्णन है। समराइच्च कहा को हरिभद्र ने धर्मकथा के नाम से अभिहित किया है, जिसकी विषय-वस्तु देव-मानुषिक है-'दिव्व माणुसवत्थुगयं धम्मकहं चेव' ।'
धर्मकथा क्या है ? धर्मकथा के लक्षण दर्शाते हुए कहा है जिनमें
खंड १९, अंक ३
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