________________
जैन दर्शन में मोक्षवाद
साध्वी श्रुतयशा
भारतीय दर्शन मूल्यपरक दर्शन है । मूल्यों को भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ नाम से अभिहित किया जाता है। धर्म, अर्थ काम और मोक्ष-इस पुरुषार्थ चतुष्टयी में प्रथम युग्म साधनमूल्य है और अपर साध्यमूल्य । जिनमें क्रमशः प्रथम लौकिक और द्वितीय लोकोत्तर है । यही कारण है कि भारतीय दर्शन में मोक्ष को सर्वोच्च मूल्य माना गया है। जहां पश्चिमी दार्शनिक, नैतिकता, सामाजिकता या जनकल्याण पर आकर अपनी विचार श्रेणी को विराम देते प्रतीत होते हैं वहां भारतीय मनीषियों को दुःखचक्र का आत्यन्तिक विनाश और भव परम्परा का सर्वथा अभाव करना अभीष्ट है।
समस्त भारतीय दार्शनिक परम्पराएं, चाहे वे नास्तिक हों या आस्तिक, वैदिक हों या अवैदिक, मोक्षविषयक विचार सभी में उपलब्ध होते हैं। इसलिए मोक्ष के विषय में जैन दर्शन की मान्यता प्रस्तुत करने से पूर्व अन्य दार्शनिकों के तद्विषयक विचारों का विहंगावलोकन अपेक्षित प्रतीत होता है। विभिन्न भारतीय दर्शनों में मुक्ति का स्वरूप
आधुनिक समाज का जीवनगत दर्शन है चार्वाक दर्शन । चार्वाक प्रत्यक्ष प्रमाणवादी होने के कारण आत्मा, पुनर्जन्म, कर्म, स्वर्ग नरक, मोक्ष आदि परोक्ष प्रमेयों को नहीं मानता अतः उसके मोक्ष विषयक विचार अत्यल्प मात्रा में ही मीमांसित होते हैं तथापि सर्वदर्शनसंग्रह में उस पर संक्षेप में विचार हुआ है। चार्वाक के अनुसार 'पारतन्त्र्यं बन्धः, स्वातन्त्र्यं मोक्षः।' अर्थात् परतन्त्रता बन्ध और स्वन्त्रता मोक्ष है।
___ न्यायदर्शन के अनुसार आत्मा के सर्वदुःखों का आत्यन्तिक उच्छेद होना ही मोक्ष है । 'तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्गः । चूंकि सासारिक सुख भी विषानुषक्त मधु के समान दुःख रूप ही है। उसमें सातिशयता, सदृशता, अर्जन, रक्षण आदि में क्लेशवहुलता और दुःखों के साथ अविनाभाव आदि बुराइयां उन्हे दुःख के सामान हेय बना देती है अतः मोक्ष में सुख भी नहीं ! न्याय का ही समानतन्त्र वैशेषिक दर्शन चैतन्य को आत्मा का स्वाभाविक नहीं, किन्तु औपाधिक गुण मानता है । उसके अनुसार बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म खण्ड १९, अंक ३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org