Book Title: Tulsi Prajna 1993 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ । का प्रयोग करके दुष्यन्त की प्रेमगत चरित्रिक-दुर्बलता को कहा है। वस्तुतः राजा कभी भी प्रेमी नहीं हुए । राजा सिर्फ राजा ही होते हैं और वे विलासी होते हैं। यदि वे प्रेमी होते तो कभी भी राजा नहीं हुए होते। कालिदास की कृतियों में सच्चा प्रेमी तो मात्र मेघदूत का यक्ष है और प्रेमिकाएं हैंयक्षिणी, शकुन्तला, पार्वती, उर्वशी और मालविका ! सन्दर्भ : १. अभिज्ञानशाकुन्तलम्, सुबोधचंद्र पंत, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, १९७०, अंक-६, पृ. ५८४ २. वही, प्रथम अंक, पृ. १२८-"हला परित्रायथां मामनेन दुविनीतेन दुष्टमधुकरेणपरिभूममानाम् ।" ३. वही, ५.१ ४. वही, ५.१ ५. वही, द्वितीय अंक, पृ. २६८, "यथा कस्यापि पिण्डखजूरैरुद्ध जितस्य तिन्तिण्यामभिलाषो भवेत् तथा स्त्रीरत्नपरिभाविनो भवत इयमभ्यर्थना ।" ६. वही, तृतीय अंक, पृ. ३५६ ७. वही, पृ. ३०८; २.१८ ८. वही, ५.१९-इदमुपनतमेव रूपमक्लिष्टकान्ति प्रथमपरिगृहीतं स्यान्न वेति व्यवस्यन । भ्रमर इव विभाते कुन्दमन्तस्तुषारं न च खलु परिभोक्तुं नैव शक्नोमि हातुम् ॥ ९. वही, ५.२० : कृताभिमर्शामनुमन्यमानः सुतां त्वया नाम मुनिर्विमान्यः । मुष्टं प्रतिग्राह्यता स्वमर्थं पात्रीकृतो दस्युरिवासि येन ।। १०. वही, ५.२५ : आजन्मनः शाठ्यमशिक्षितो यस्तस्यप्रमाणं वचनं जनस्य । परातिसंधानमधीयते यैविद्य ति ते सन्तु किलाप्तवाचः ।। ११. वही, पंचम अंक, पृ. ५०८ : सुष्ठु तावदत्र स्वच्छन्दचारिणी कृतास्मि । याहमस्य पुरूवंशप्रत्ययेन मुखमधोर्ह दयस्थितविषस्य हस्ताभ्याशमुपगता। १२. वही, षष्ठ अंक, पृ. ५८०-६१७ १३. वही, ६.२४-२५ १७६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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