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कल्पना-नगर के श्रद्धा-गृह में स्थित होकर अपने आराध्य चरणों में आंसुओं को पुष्पांजलियां चढ़ाई होंगी। वे ही अंजलियां बाद में शब्दांजलि बनकर अश्रु वीणा के रूप में अक्षरित दृग्गोचर हुई। चन्दन बाला की मुक्ति का कथानक ग्रहण कर महाकवि महाप्रज्ञ ने अश्र वीणा का निर्माण तो किया, साथ ही अपनी मुक्ति-प्राप्ति की वेदना को भी शब्दायित करने से पीछे नहीं रहे । अस्तु ।
___'गीति-काव्य' अंग्रेजी लिरिक' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है । पाश्चात्य काव्य-समीक्षा में अन्तत्तिनिरूपक अथवा स्वानुभूति-अभिव्यंजक काव्य को 'लिरिक' कहा जाता है। यह विधा अन्तर्जगत के नाना-व्यापारों को बाह्याभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए उत्कृष्ट एवं सफल साधन है। इसमें वृत्तियां अन्तर्मुख हो जाती हैं और आत्मावस्था का प्रकाशन ही मुख्य होता है । अनुभूति और भावना की अजस्त्र-धारा में वस्तु-तत्त्व न जाने बहकर कहाँ चला जाता है । कवि या कलाकार तूष्णीभाव से प्रकृति के कार्य-कलापों का अवलोकन करता होता है कि अचानककोई घटना घट जाती है जिसके फलस्वरूप उसका अन्तर्मन उद्वेलित हो जाता है और तब जन्म-जन्मान्तरीय संचित भावमाएं शब्दों की सुन्दर-माला के माध्यम से अभिव्यक्ति पा जाती हैं, उसे ही साहित्य-लोक में गीति-काव्य कहा जाता है ।।
___ सुप्रसिद्ध सौन्दर्य-शास्त्री 'जाफ्राय' ने गीतिकाव्य को काव्य का पर्यायार्थक मानते हुए स्वात्मानुभूति एवं आह्लादजन्यता आदि को उसका प्रमुख तत्त्व स्वीकार किया है। हेगेल के अनुसार गीति-काव्य में शुद्ध कलात्मक रूप से आंतरिक-जीवन के रहस्यों, उसकी आशाओं, उसमें तरंगायित आह्लाद, वेदना, प्रलाप या उन्माद का चित्रण होता है। अर्नेस्ट राइस ने हृदयगत भावों की संगीतमय-अभिव्यक्ति को गीति-काव्य माना है। राइस महोदय के अनुसार गीतिकाव्य में अनुभूति, कल्पना और संगीत-तीन तत्त्वों का होना आवश्यक है। कवि के स्वान्तःकरण में स्थित मार्मिक भावों की शाब्दिकअभिव्यक्ति गीतिकाव्य है। जब कवि की स्वात्मानुभूति सुख-दुःख या अन्तबेदना स्वाभाविक स्वर-लहरियों से युक्त होती हैं तब गीतिकाव्य का जन्म होता है । महादेवी वर्मा के अनुसार जब भावावेश अवस्था में स्वात्मगत सुखदुःख की अभिव्यक्ति होती है तो गीतिकाव्य बनता हैं। कभी-कभी वे क्षण आते हैं जब सफल व्यक्तित्व-सम्पन्न पुरुष की, अपने प्रिय को याद कर या उसके प्रति श्रद्धा भक्ति से अथवा अन्य किसी कारण से, आंखें थम जाती हैं । वह कुछ प्रलाप करने लगता है। वह प्रलाप ही गीति-काव्य है । अश्र वीणा का कवि भी अवश्य ही इस अवस्था से गुजरा होगा। 'अश्र वीणा' में ये सभी अभिव्यक्तियां परिलक्षित होती हैं:
१. श्रद्धा की पूर्ण अभिव्यक्ति-उस सोतस्विनी का प्रारम्भ श्रद्धा के
प्रज्ञा तुलसी
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