Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ ४२) ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ वाले पाँचों इन्द्रियों के विषयों के जितने भी साधन हैं वे सब, काले सर्प जैसे लगने लग जाते हैं। पण्डित भूधरदासजी ने कहा है कि - "राग उदय भोगभाव लागत सुहावने-से, बिना राग ऐसे लगे जैसे नाग कारे हैं। राग ही सो पाग रहे तन में सदीवजीव, राग गये आवत गिलान होत न्यारे हैं। राग सौ जगतरीत झूठी सह सांची जाने, राग गये सूझत असार खेल सारे हैं। रागी बिनरागी के विचार में बड़ो ही भेद जैसे भटा पथ्य काहू-काहू को बयारे हैं।" अत: उक्त आत्मार्थी की भावना तो ऐसी रहती है। कि मेरा उपयोग कहीं किसी में भी नहीं उलझे और ज्यादा से ज्यादा समय उपयोग खाली रहे तो आत्मा के कल्याणकारी उपदेश अथवा तत्त्वज्ञान जो प्राप्त किया है, उसी के चिन्तन, मनन, अध्ययन, सत्समागम, चर्चा वार्ता में ही उपयोग लगा रहे, वह तो एकान्त का प्रेमी हो जाता है, उसे अकेलापन अच्छा लगने लगता है, क्योंकि संसारी जीव बिना मतलब की बातों में मेरे उपयोग को फंसायेंगे अत: उनसे बचने की चेष्टा करता है। उसको तो पाँचों इन्द्रियों के विषय भी अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते। फलत: उसका तो जीवन ही ज्ञान-वैराग्यमय हो जाता है। अन्याय पूर्ण वर्तन एवं अभक्ष्यरूप खानपान तो प्राय: समाप्त ही हो जाता है। नाटक समयसार निर्जराद्वार के छंद ४१ में कहा है - ग्यान कला जिनके घटजागी। ते जगमांहि सहज वैरागी॥ ग्यानी मगन विषय सुखमाहीं। यह विपरीत संभवे नाहीं।। ४१ ।। विषय भोगों के प्रति एवं भोगों का आलंबन यह शरीर उसके प्रति, भी उपेक्षाबुद्धि वर्तने लगती है। आत्मा का अनुभव प्राप्त करने की ही धुन लगी रहती है। कभी अपने उपयोग को परिवर्तन करने के लिए For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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