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( सुखी होने का उपाय भाग - ५
ही तो प्राप्तव्य अर्थात् सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकेगा ? जैसे प्रेमकुमार को आत्माराम से मिलना हो लेकिन वह आत्माराम को पहिचानता ही नहीं हो तो, विचार करिये, प्रेमकुमार को आत्माराम से मिलने के लिये क्या प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी ? सबसे पहिले किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढना पड़ेगा, जिसने आत्माराम को प्रत्यक्ष देखा हो । तत्पश्चात् उसका समागम करके उससे आत्माराम के ऐसे लक्षणों अर्थात् चिन्हों की जानकारी लेनी होगी जो चिन्ह आत्माराम ही में मिलें अन्य किसी में नहीं मिलें । फिर उन चिन्हों - लक्षणों को भली प्रकार, दृढ़तापूर्वक समझकर निर्णय में लेकर उन लक्षणों को अपने धारणा ज्ञान में ऐसा दृढता के साथ बैठाना पड़ेगा कि वे कालांतर में भी विस्मृत नहीं हों । तत्पश्चात् आत्माराम को ढूँढने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सकती है। ढूँढने का कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व, उपरोक्त प्रक्रिया को सम्पन्न करना कितना आवश्यक प्रतीत होता है । उपरोक्त दृष्टान्त से यह स्पष्ट हो जाता है ।
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विचार करिये उपरोक्त प्रक्रिया अपनाये बिना क्या आत्माराम को ढूँढ लेने के लिये अन्य कोई भी प्रक्रिया सफल हो सकती है ? नहीं हो सकती। इसीप्रकार अनादिकाल से अपरिचित आत्मतत्व पहिचानने के लिये भी, उपरोक्त प्रक्रिया ही अपनानी पड़ेगी, अन्य कोई उपाय है नहीं ।
सर्वप्रथम तो जो आत्मतत्त्व का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त कर चुके हों, ऐसे ज्ञानीपुरुष की खोज करनी होगी, फिर उनका समागम प्राप्त करना पड़ेगा। उनकी अनुपस्थिति में उनकी वाणी अर्थात् आगम के अभ्यास द्वारा उस अपरिचित आत्मा को प्रत्यक्ष करने की तीव्र अभिलाषा अर्थात् रुचि एवं लगन के साथ, योग्य चिन्हों की तलाश करके उसके चिन्हों अर्थात् लक्षणों को संशय, विमोह, विभ्रम से रहित पूरी लगन के साथ समझना पड़ेगा और दृढता व रुचिपूर्वक पूर्वापर विरोध रहित पक्का निर्णय करना पड़ेगा । फिर ऐसे निर्णय को धारणा ज्ञान में ऐसा धारण
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