Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 241
________________ २५६ ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ स्वरूप में ज्ञान का उपयोग जुड़ गया और बीच में से विकल्प निकल गया अकेला ज्ञान रह गया तब निर्विकल्प अनुभूति हुई. परम आनन्द हुआ। " इसी प्रक्रिया को पण्डित बनारसीदास जी ने नाटक समयसार के पृष्ठ ४० जीव द्वार के सवैया २० में इसप्रकार कहा है Jain Education International एक देखिए जानिए, रमि रहिए इक ठौर । समल विमल न विचारिए, यहै सिद्धि नहीं और ॥ इसप्रकार ऐसे महत्वपूर्ण विषय को आगामी भाग में प्रकाशित करने की चेष्टा की जायेगी । उपरोक्त विषय के माध्यम से पाठकगण अपनी रुचि को सब ओर से समेटकर, एकमात्र अपने त्रिकाली अकर्त्ता - अभोक्ता ज्ञायक स्वभावी आत्मा में सीमित कर सकेंगे तो मैं अपने श्रम को सार्थक समझँगा । इसी भावना के साथ कि यदि कोई भूल रह गई हो तो कृपया सुधार लेवें । --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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