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( सुखी होने का उपाय भाग -
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स्वरूप में ज्ञान का उपयोग जुड़ गया और बीच में से विकल्प निकल गया अकेला ज्ञान रह गया तब निर्विकल्प अनुभूति हुई. परम आनन्द हुआ।
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इसी प्रक्रिया को पण्डित बनारसीदास जी ने नाटक समयसार के पृष्ठ ४० जीव द्वार के सवैया २० में इसप्रकार कहा है
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एक देखिए जानिए, रमि रहिए इक ठौर । समल विमल न विचारिए, यहै सिद्धि नहीं और ॥ इसप्रकार ऐसे महत्वपूर्ण विषय को आगामी भाग में प्रकाशित करने की चेष्टा की जायेगी । उपरोक्त विषय के माध्यम से पाठकगण अपनी रुचि को सब ओर से समेटकर, एकमात्र अपने त्रिकाली अकर्त्ता - अभोक्ता ज्ञायक स्वभावी आत्मा में सीमित कर सकेंगे तो मैं अपने श्रम को सार्थक समझँगा । इसी भावना के साथ कि यदि कोई भूल रह गई हो तो कृपया सुधार लेवें ।
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