Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 219
________________ २३४) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ आगमानुसार देशनालब्धि के पूर्व भी विशुद्धिलब्धि का होना अनिवार्य है। विशुद्धिलब्धि का सामान्य स्वरूप तो कषायों की मंदता रूप परिणाम है लेकिन दान आदि में भी कोमल भाव हो जाते हैं ऐसे भाव किंचित विशुद्ध दिखते हुए भी वे विशुद्धिलब्धि के परिणाम नहीं माने जा सकते इसलिये पहिले यह जानना आवश्यक है कि इसप्रकार की विशुद्धि के परिणाम कार्यकारी नहीं हो सकती। लब्धियों के स्वरूप बताने वाले प्रकरण में पूर्व की तीनों लब्धियों का स्वरूप मोक्षमार्ग प्रकाशक के पृष्ठ २५७ पर निम्नप्रकार दिया है : “कोई मंदकषायादिका कारण पाकर ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षयोपशम हुआ, जिससे तत्व विचार करने की शक्ति हुई तथा मोह मंद हुआ, जिससे तत्त्व विचार में उद्यम हुआ, और बाह्यनिमित्त देव-गुरुशास्त्रादिक का हुआ, उनसे सच्चे उपदेश का लाभ हुआ।" ___तथा इसी ग्रंथ के पृष्ठ २६१ पर भी निम्नाकिंत है :- "मोह का मंद उदय आने से मंदकषायरूप भाव हों कि जहाँ तत्व विचार हो सके सो विशुद्धलब्धि है।" उपरोक्त प्रकार से स्पष्ट हो जाता है कि क्षयोपशम तो सैनी पंचेन्द्रिय मात्र को हो जाता है, लेकिन मात्र वह क्षयोपशम उपरोक्त लब्धि नहीं माना जा सकता। लेकिन जिस क्षयोपशम का तत्त्व निर्णय करने में उपयोग हो तो, मात्र ऐसे क्षयोपशम को ही आत्महित के लिये कार्यकारी होने से, लब्धि के रूप में माना गया है। इसीप्रकार जिस कषाय की मंदता में अर्थात् विशुद्धता में तत्त्वविचार करने में उद्यम हो, मात्र वह विशुद्धता ही विशुद्धिलब्धि मानी गई है। लेकिन जिस विशुद्धता में संसार, देह, भोगों के प्रति किन्हीं कारणों से किंचित उदासीनता तो आ गयी हो उन कषायों की मंदता के समय For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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