Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 227
________________ २४२) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ बतलाने वाला होता है और उसके द्वारा प्राप्त उपदेश ही वास्तव में देशनालब्धि का प्रारंभ है। ज्ञानी उपदेशक को कैसे जाने? नियम यह है कि अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को पहिचानना हो तो सर्वप्रथम उसका निर्दोष लक्षण जानना चाहिए। लक्षण अर्थात् चिन्ह । लक्षण उसको कहा जाता है, "जिस वस्तु को पहिचानना हो, उस वस्तु में तो वह लक्षण मिले ही, लेकिन अन्य वस्तु में नहीं मिले, तथा वस्तु में वह लक्षण अवश्य बना रहे," ऐसा लक्षण ही निर्दोष लक्षण कहा जाता है। क्योंकि उस चिन्ह के द्वारा ही वह वस्तु पहचानी जा सकती है। उक्त सिद्धान्त के अनुसार सर्वप्रथम हमको,ज्ञानी का लक्षण समझना चाहिए। प्रश्न :- ज्ञानी तो आत्मा होता है और आत्मा अमूर्तिक है अत: उसकी पहिचान बाह्य लक्षणों से कैसे हो सकती है? क्योंकि पहिचानने का कार्य तो इन्द्रियज्ञान से होगा, उससे आत्मा कैसे पहिचाना जा सकेगा? समाधान :- यह बात भी सत्य है कि आत्मा अमूर्तिक है और अमूर्तिक का कार्य भी, अमूर्तिक ही हो सकता है। साथ ही अमूर्तिक को जानने का सामर्थ्य तो क्षायकज्ञान में ही है। इन्द्रियज्ञान के द्वारा आत्मा को वैसा नहीं पहिचाना जा सकता ? समाधान :- वास्तविक स्थित इसप्रकार है कि, अमूर्तिक आत्मा तो ज्ञानी पुरुष के ज्ञान में भी कभी ज्ञेय नहीं बनता, वरन् उसको भी आत्मानन्द के स्वाद की अनुभूति अर्थात् वेदन होता है। वह वेदन सम्यग्दृष्टि को निर्विकल्प दशा होने पर ही होता है। उस वेदन का स्वाद ज्ञानी को अपने ज्ञान में ज्ञात होता है। ऐसे आनंद की अनुभूति ज्ञानी www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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