Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 214
________________ देशनालब्धि की मर्यादा) (२२९ द्रव्य स्वभाव जैसी हो, वही मेरी स्वाभाविक पर्याय है। ऐसी पर्याय सिद्ध भगवान में प्रगट है इसलिये उनके आत्मा का स्वरूप जानने से ही अपने आत्मा के स्वरूप की पहिचान हो सकती है। अत: अस्ति की अपेक्षा आत्मा का स्वरूप, प्रत्यक्ष रूप से समझने की सरल प्रक्रिया भगवान सिद्ध की पर्याय को समझना है। अपनी आत्मा की स्वाभाविक दशा समझने के लिये आचार्य श्री कुंदकुंद ने समयसार में निम्नप्रकार से समझाने की चेष्टा की है। गाथा १४ के गाथार्थ में आत्मा के स्वरूप को नास्ति की मुख्यता से निम्नप्रकार से समझाया है कि “जो नय ज्ञान की पर्याय आत्मा को बंध रहित और पर के स्पर्श से रहित, अन्यत्व रहित, चलाचलता रहित, विशेष रहित, अन्य के संयोग से रहित - ऐसे पाँच भाव रूप में देखता है, उसे हे शिष्य? तू (आत्मा के द्रव्य के स्वभाव को देखने वाली ज्ञान की ) पर्याय को शुद्धनय जान ।” __गाथा ३८ के गाथार्थ में उसी आत्मा के स्वरूप को अस्ति की मुख्यता से समझाया है : ___ “दर्शन ज्ञान चरित्र रूप परिणित आत्मा अर्थात् सम्यग्ज्ञानी आत्मा यह जानता है कि निश्चय से अर्थात् वास्तिवकपने से मैं एक हूँ, शुद्ध हूँ, दर्शनज्ञानमय हूँ , सदा अरूपी हूँ, किंचित्मात्र भी अन्य परद्रव्य, परमाणु मात्र भी मेरा नहीं है ऐसा निश्चय है (यह निर्णय है)।" गाथा ७३ के गाथार्थ में आत्मा का स्वरूप अस्ति-नास्ति दोनों अपेक्षापूर्वक समझाया है। “ज्ञानी विचार करता है, कि - निश्चय से अर्थात् वास्तविक रूप से मैं एक हूँ , शुद्ध हूँ, ममता रहित हूँ, ज्ञानदर्शन से पूर्ण हूँ, उस स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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