________________
द्रव्य में पर्याय की स्थिति)
(५१
कठिनता यह भी है कि भिन्न प्रदेश वाले पदार्थों में से किसी एक को भिन्न समझना तो सरल है, कारण दोनों का आपस में अत्यन्ताभाव है। लेकिन आत्मपदार्थ में तो उन ही प्रदेशों में, नित्य स्वभाव एवं अनित्य स्वभाव दोनों, एक साथ ही विद्यमान हैं। उनमें भिन्नता समझना कठिन अवश्य लगता है। ऐसी कठिन समस्या का ही आचार्य श्री समाधान करते हैं कि कठिन लगने पर भी, अशक्य नहीं है, कारण भिन्नता विद्यमान है। जब वास्तव में भिन्नता है ही तो, भिन्नता को समझना असंभव कैसे हो सकता है ? भिन्नता को समझे बिना अन्य कोई उपाय नहीं है। इन दोनों परस्पर विपरीत स्थितियों में से मैं अपना अस्तित्व किस रूप मानूं? अत: अपने आपके अस्तित्व का निर्धारण करने के लिए मुझे तो इन दोनों का भेदज्ञान करके, अपना अस्तित्व खोजना ही पड़ेगा।
भिन्नता समझने का मूल आधार कौन ? उपरोक्त दोनों स्वभावों में से किसी एक में अपना अस्तित्व निर्धारण करने के लिए, दोनों स्वभावों का वास्तविक अध्ययन किया जाकर, अपने विवेक से निर्णय करना ही पड़ेगा कि दोनों में से कौनसा स्वभाव, स्व के रूप में माना जाने योग्य है।
प्रथम तो यह समझना चाहिए कि सामान्य रूप से उपरोक्त दोनों स्वभाव तो छहों जाति के समस्त द्रव्यों में, एक जैसे ही अनादि से चले
आ रहे हैं, अनन्त काल तक अनवरत रूप से चलते ही रहेंगे। उन सब में मेरे लिए प्रयोजनभूत तो, अकेली मेरी आत्मा ही है, जिसके दुख-सुख का वेदन मुझे अनुभव में आता है। अत: अपने आत्मा के ही नित्य एवं अनित्य दोनों स्वभावों का अध्ययन किया जाकर, दोनों में से कौन से स्वभाव वाला मैं हूँ अर्थात् किस रूप मेरा अपना अस्तित्व मानने योग्य है? यह निर्णय करना ही सुखी होने का उपाय है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
"www.jainelibrary.org