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नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता)
इस कथन से भी यह स्पष्ट होता है कि निश्चय-व्यवहार अध्यात्म के नय हैं।
उक्त दोनों दृष्टियों को लक्ष्य में रखकर विचार करने पर मूलनय दो-दो के दो युगलों में कुल मिलाकर चार ठहरते हैं:(क ) १. निश्चय
२. व्यवहार । (ख) १. द्रव्यार्थिक २. पर्यायार्थिक।
लगता है कि द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक को निश्चय-व्यवहार का हेतु कहकर ग्रंथकार आगम को अध्यात्म का हेतु कहना चाहते हैं। द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक आगम के नय हैं और निश्चय- व्यवहार अध्यात्म के नय हैं, यहाँ द्रव्यार्थिक -पर्यायार्थिक को निश्चय-व्यवहार का हेतु कहने से यह सहज ही प्रतिफलित हो जाता है कि आगम अध्यात्म का हेतु है, कारण है, साधन है।
आत्मा का साक्षात् हित करने वाला तो अध्यात्म ही है, आगम तो उसका सहकारी कारण है-यही बताना उक्त कथन का उद्देश्य भासित होता है।"
__ इसप्रकार उक्त सब कथनों का तात्पर्य यही निकलता है कि द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नय, निश्चय-व्यवहारनयों के पूरक अर्थात् सहायक ही है। द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनय द्वारा समझी गई वस्तु में से कौनसे पक्ष को मुख्य करने से मेरा प्रयोजन जो एक मात्र वीतरागता है प्राप्त होगा, यह समझना है। इस प्रयोजन के लिए ही उपरोक्त दोनों नयों के प्रयोग करने की पद्धति का नाम ही निश्चय-व्यवहार नय है। इस ही कारण आचार्यों ने द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नयों को आगम के नय बताये हैं एवं निश्चय-व्यवहार नयों को अध्यात्म के नय कहा है। आगम को अध्यात्म का पूरक बताया है। अत: सिद्ध होता है कि आत्मा का अनुभव कराने के लिए उपयोगी तो, निश्चय-व्यवहार नय ही है।
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