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नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता )
ज्ञान उस ही ज्ञेय को जानने में प्रवर्तन करने लगता है, जिसको मैंने उन सब ज्ञेयों में महत्वपूर्ण समझा हो। इसप्रकार नयों के प्रयोग के लिए किसको मुख्य मानना, यह निर्णय करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है । इसके बिना नयों का प्रयोग फल प्रदान करने वाला नहीं हो सकेगा ।
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द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयों के प्रयोग में तो हमको, हमारे आत्मा को समझने का उद्देश्य है। अतः उसके लिए तो दोनों नयों के मुख्य गौण व्यवस्थापूर्वक, क्रमशः प्रयोग द्वारा समग्र वस्तु को समझा जाता है । लेकिन अनुभव के लिए ऐसा नहीं है, क्योंकि अनुभव तो मात्र मुख्य का ही होता है, गौण का नहीं । अत: अनुभव के लिए किसको मुख्य करना, किसको गौण रखना, इसके यथार्थ निर्णय की प्रक्रिया को समझना ही निश्चयव्यवहारनय को समझना है ।
निश्चय - व्यवहार की उपयोगिता
निश्चय - व्यवहार की परिभाषाओं के संबंध में चर्चा करने के पूर्व यह समझना है कि निश्चय - व्यवहार का आधार अर्थात् आश्रय कौन है ? इसका समाधान द्रव्य स्वभाव प्रकाशक नयचक्र की गाथा १८२ से प्राप्त होता है कि :
“नयों के मूलभूत निश्चय और व्यवहार दो भेद माने गये हैं, उसमें निश्चयनय तो द्रव्याश्रित है और व्यवहारनय पर्यायाश्रित है; ऐसा समझना चाहिए।"
( परमभाव प्रकाशक नयचक्र पृष्ठ ३४ )
उपरोक्त गाथार्थ से यह महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्राप्त होता है कि द्रव्यार्थिकनय का विषय जो अभेद ध्रुवद्रव्य है वह निश्चयनय का आश्रय है एवं पर्यायार्थिकनय की विषय भूत उत्पाद-व्यय वाली पर्याय एवं भेद वे ही व्यवहारनय के विषय हैं। इससे फलित होता है कि द्रव्यार्थिकनय एवं निश्चयनय का विषय एक ही है और इसीप्रकार पर्यायार्थिकनय एवं व्यवहारनय का विषय एक ही है
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