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( सुखी होने का उपाय भाग - ५
वीतरागता की पोषक ही जिनवाणी कहलाती है। यह है मुक्ति का मार्ग निरन्तर हमको जो दिखलाती है । इसप्रकार उपरोक्त सभी प्रकार से विचार करने पर यह अत्यन्त स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि यथार्थ धर्म का मार्ग पहचान करने के लिए जिनवाणी के सभी कथनों में से यथार्थ मोक्षमार्ग बताने वाली, शुद्ध स्वर्ण की लकीर के समान हमारी यथार्थ समझ ही कसौटी का काम करेगी । उसको मुख्य बनाकर जिनवाणी के सभी कथनों की यथार्थता 'एकमात्र वीतरागता' ही, को बहुत सरलता के साथ पहिचाना जा सकता है ।
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समाधान :
मात्र वीतरागता को ही यथार्थ मोक्षमार्ग क्यों माना जावे ? प्रश्न :- वीतरागता को ही सत्यार्थ मोक्षमार्ग क्यों मान लेना चाहिये ? सिद्धान्त है कि कारण तो कार्य के अनुकूल अर्थात् उसी जाति का होता है। हमारा कार्य अर्थात् आदर्श - ध्येय, एकमात्र सिद्ध भगवान का आत्मा है। उनमें जो भी गुण वर्तमान में प्रगट है उनको प्रगट करने का ही हमारा उद्देश्य है ।; इसलिये वे ही हमारे आदर्श हैं । अतः उस आदर्श को प्राप्त करने का मार्ग भी आदर्श की जाति का ही तो होगा, ताकि उस मार्ग का अनुसरण करके हम भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। जो मार्ग आदर्श की जाति से विपरीत जाति का अथवा अन्य किसी भी प्रकार का हो उसका अनुसरण करने से हम आदर्श को कैसे प्राप्त कर सकेंगे ? नहीं कर सकेंगे ।
इसप्रकार यह स्पष्ट होता है कि सिद्ध भगवान में जो भी गुण प्रकट हैं, उन गुणों का पोषक मार्ग ही सत्यार्थ हो सकता है, अन्य कोई नहीं । भगवान सिद्ध की आत्मा का परिचय प्राप्त करने के लिए हम, इसी
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