Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 195
________________ २१० ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ मिथ्यात्व रागादि में, पुण्य-पाप तथा आश्रव-बंध इन चारों का समावेश हो जाता है जिनको त्यागने योग्य बताया है तथा ग्रहण करने योग्य में बाकी के, संवर- निर्जरा तथा मोक्ष तीनों का समावेश होकर, उपरोक्त सातों तत्त्व आ जाते हैं। इसप्रकार स्व-पर के पहिचानने के लिए तो जीवतत्त्व एवं अजीवतत्त्व ही रहे। जिनके संबंध में ऊपर चर्चा करके समझकर, जीवतत्त्व को स्व के रूप में तथा अजीव तत्त्व को पर के रूप में पहिचान कर अजीव के प्रति उपेक्षा बुद्धि उत्पन्न करने का निर्णय पूर्व में कर ही चुके हैं । लेकिन मेरे ही जीवद्रव्य में पर्यायें भी तो हो रही हैं अतः उनके संबंध में भी ऊपर चर्चा कर चुके हैं, वे भी मेरे से भिन्न ही हैं । I पर्यायों के संबंध में विशेष विचार करने पर और भी समझ में निर्णय में आता है कि जो पलटती है वह पर्याय ही तो है, ध्रुवांश अर्थात् जो अपरिवर्तनीय ध्रुवतत्त्व है, उसमें पलटन होती ही नहीं, ऐसा ही हमारे अनुभव - वेदन से भी प्रमाणित होता है । मुझे आकुलता का वेदन होता है वह, एक सरीखा और लम्बे काल तक टिकता कहाँ है ? क्षण-क्षण में पलट जाता है । यह वेदन तो पर्याय में ही होता है, लेकिन द्रव्य भी उस वेदन से एक समय मात्र भी अछूता नहीं रहता। इसी से सिद्ध होता है कि पर्याय के कार्य से द्रव्य भिन्न नहीं रह सकता । अत: पर्याय शुद्ध हुए बिना निराकुल शांति का वेदन, आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता । फलत: पर्याय शुद्धि प्रगट करे बिना उपरोक्त समस्त जानकारी, निरर्थक ही रहेगी । इसी उद्देश्य को लेकर उपरोक्त पर्यायरूप सातों तत्त्वों का स्वरूप समझने का निर्देश है। क्योंकि जिनको त्यागना है, तो क्यों त्यागना ? इस समाधान के लिये स्वरूप समझना अनिवार्य हो जाता है, ग्रहण करना, पर क्यों माननाए तथा क्यों यह भी स्वरूप समझे बिना संभव नहीं हो सकता इसलिये इनका स्वरूप समझना मोक्षमार्ग में अत्यन्त उपयोगी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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