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( सुखी होने का उपाय भाग - ५
उपरोक्त कठिन समस्या को सरलतम करने का उपाय भी आचार्य श्री बताते हैं कि किसी भी अपरिचित वस्तु को ढूँढने के लिये, सर्वप्रथम उसका चित्र - फोटो - मॉडल - आदर्श के रूप में अपने ज्ञान में स्पष्ट होना चाहिए। उस चित्र के आधार पर किसी भी वस्तु को खोजना सरल हो जाता है। जैसे किसी का पुत्र खो गया हो तब उसका चित्र फोटो टी.वी. पर प्रदर्शित किया जाता है तथा पुलिस में भी प्रार्थना-पत्र के साथ वह चित्र लगाकर प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना पड़ता है । उस चित्र के माध्यम से पुत्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसको ढूँढ निकाल लेते हैं । अपरिचित का परिचय प्राप्त करने का इससे सरलतम उपाय अन्य कोई नहीं हो सकता । अतः आत्मार्थी को भी अपने अपरिचित आत्मतत्त्व को खोजने के लिए जिनवाणी के माध्यम से ऐसे आदर्श मॉडल को ढूँढ लेना चाहिए जिससे हमारे स्वरूप को खोजने का कार्य सरल एवं सफल हो सके । ऐसे हमारे आत्मस्वरूप के मॉडल अर्थात् आदर्श के रूप में जिनवाणी में भगवान अरहंत एवं सिद्ध की आत्मा को बताया गया है। ऐसा अनेक ग्रंथों में वर्णन है, यथा :
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प्रवचनसार गाथा ८० में कहा है
“जो अरहंत को द्रव्यपने, गुणपने, पर्यायपने जानता है, वह वास्तव में अपने आत्मा को जानता है और उसका मोह मिथ्यात्व अवश्य लय को प्राप्त होता है । "
इसीप्रकार समयसार गाथा १ की टीका में आचार्य अमृतचंद्र कहते
हैं:
यहाँ संस्कृत टीका में “अथ” शब्द मंगल के अर्थ को सूचित करता
I
है । ग्रंथ के प्रारम्भ में “सर्वसिद्धों को भाव- द्रव्य स्तुति से अपने आत्मा में तथा पर के आत्मा में स्थापित करके इस समय नामक प्राभृत का भाववचन और द्रव्यवचन से परिभाषण व्याख्यान प्रारम्भ करते हैं”
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