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( सुखी होने का उपाय भाग-४ को तन्मय होकर जानता है, लेकिन जगत के अन्य पदार्थों को जानता तो है, लेकिन तन्मय हुए बिना परज्ञेय के रूप में मात्र जान लेता है। हमारा आत्मा भी अप्रयोजनभूत परपदार्थ जानने में आ जाने पर भी, उनको उपेक्षितरूप से जान लेता है, लेकिन दुःखी-सुखी नहीं होता लेकिन स्व में अपनापन होने से स्व के जानने से आत्मा आनन्द का भोक्ता बन जाता
नि:शंक निर्णय प्राप्त करने का उपाय आचार्यश्री उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय-१, सूत्र-६ में कहा है कि "प्रमाणनयैरधिगमः अर्थात् प्रमाण और नय के द्वारा स्वरूप का यथार्थ निर्णय होता है। अत: निर्णय करने में नयज्ञान की उपयोगिता है? – इस पुस्तक में यह भी बताया गया है। द्रव्यार्थिकनय, पर्यायार्थिकनय का स्वरूप एवं विषय बताते हुए इनके ज्ञान से अपनी ही पर्यायों की भीड़-भाड़ में छुपी अपनी आत्मज्योति को भेदकदृष्टि से द्रव्यार्थिकनय के द्वारा निकाल लेता है। अपने त्रिकाली ज्ञायकभाव में अहंपना स्थापन करने के लिये भगवान अरहन्त के आत्मा के दृष्टान्त की कसौटी से अपने आत्मा को कसने की विधि समझाई है। साथ ही पर्यायार्थिकनय के विषयभूत अपनी पर्याय एवं अन्य सभी को, अपने से भिन्न परज्ञेय जानकर, उनमें से अहंपना दूर कर, उनके प्रति कर्तापने की बुद्धि के अभाव द्वारा उपेक्षाभाव जागृत कर, तटस्थ ज्ञाता-भाव प्रगट करने का उपाय भी इस पुस्तक में बताया गया है।
___ अपने ही आत्मा के अन्दर बसे हुए त्रिकालीज्ञायक ऐसे आत्मस्वरूप की अनुभूति में बाधक ऐसे यथार्थ भेदज्ञान का अभाव होने से उसका यथार्थ ज्ञान हुए बिना शुद्धात्मानुभूति प्राप्त होना असंभव है। ऐसे भेदज्ञान का उपाय निश्चयनय एवं व्यवहारनय का यथार्थ ज्ञान है। अत: उनका भी सांगोपांग ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। इसलिए उनका स्वरूप एवं मोक्षमार्ग प्राप्त करने में उनकी उपयोगिता भी इसमें बताई गई है। यथार्थतः निश्चयनय का कार्य, व्यवहार का निषेधक बने रहना ही है, परन्तु ऐसा होने पर भी मोक्षमार्ग में निश्चय का सहचारी बना रहकर व्यवहार बाधक
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