Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 4
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 171
________________ १७०) ( सुखी होने का उपाय भाग-४ ज्ञेय विशेष के प्रति आकर्षित होगा तो वह ज्ञान उस ज्ञेय में ही मर्यादित होकर अपने स्वभाव को कुंठित कर देगा। यही रहस्य है भगवान अरहंत के ज्ञान की सर्वज्ञता का। अज्ञानी का ज्ञान तो ज्ञेय विशेष के प्रति आकर्षित होने से, ज्ञेय निरपेक्ष नहीं परिणमता, फलत: ज्ञान का कार्य कुंठित अर्थात् सीमित होकर परिणमता है। तात्पर्य यह है कि मोह का अभाव होने पर ज्ञेयमात्र के प्रति निरपेक्षता हो जाती है तो आत्मा का ज्ञान भी असीमित हो जाता है, अमर्यादित हो जाता है। पर्याय को जाने बिना पदार्थ का ज्ञान संभव कैसे होगा? । प्रश्न - आत्मा ने पदार्थ को जाना अथवा पर्याय को जाना, इसका इतना बड़ा दण्ड क्यों होना चाहिये? पर्याय भी द्रव्य का अंश ही तो है और पदार्थ में अन्तर्गर्भित होती है। अत: पर्याय को जाने बिना पदार्थ कैसे जाना जा सकेगा? उत्तर - महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्ञेयरूपी पदार्थ में एक ही समय, एक ही साथ दो पक्ष निरन्तर विद्यमान रहते हैं। एक पक्ष तो नित्य स्थाई ध्रुव द्रव्यपक्ष है, दूसरा अहित्य, अस्थाई, अध्रुव, हर समय पलटता हुआ पर्याय पक्ष हैं दोनों ही परस्पर विरुद्ध स्वभावी हैं। दूसरी ओर क्षायोपशमिकज्ञान की अर्थात् छद्मस्थज्ञान की भी ऐसी निर्बलता है कि वह परस्पर विरोधी दोनों पक्षों को एकसाथ उपयोगात्मक जान नहीं सकता। वह जब द्रव्य पक्ष को जानेगा तो पर्याय पक्ष रह जावेगा और जब पर्याय पक्ष को जानेगा तो द्रव्य पक्ष रह जावेगा। निष्कर्ष यह है कि छद्मस्थ आत्मा एक समय में एक ही पक्ष को उपयोगात्मक जान सकेगा। अत: आत्मा को ही यह चुनना होगा कि वो दोनों में से किसको जानने से मेरा प्रयोजन सिद्ध होगा। अत: इसका यथार्थ निर्णय करना अत्यन्त उपयोगी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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