Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 4
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 105
________________ १०४ ) ( सुखी होने का उपाय भाग-४ आत्मा परज्ञेयों को कैसे जानता है ? प्रश्न यथार्थतः तो आत्मा अपने स्वज्ञेय को छोड़े बिना, पर में पहुँचे बिना, तथा पर के साथ सम्पर्क किये बिना भी पर को जान लेता है और आत्मा को पर का ज्ञान भी अवश्य होता है । अतः स्पष्टता आवश्यक है कि फिर वह जानना किसप्रकार होगा ? उत्तर - यह तो निर्विवाद है कि हरएक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव तो उसका निजद्रव्य ही होता है और पर्याय अपने स्वद्रव्य में ही तन्मयतापूर्वक परिणमन करती है। उसे पर्याय का कार्यक्षेत्र भी उसका निजद्रव्य ही होता है, किसी भी पर्याय का कार्यक्षेत्र अपने द्रव्य के बाहर हो ही नहीं सकता । इसप्रकार यथार्थतः आत्मा की ज्ञान पर्याय, अपने में रहते हुए ही जानती है । सभी द्रव्यों में प्रमेयत्वगुण है, प्रमेयत्वगुण के कारण ही सब द्रव्य ज्ञान में ज्ञेय के रूप में ज्ञात हो सकते हैं। प्रमेयत्वगुण भी सब द्रव्यों में अपना-अपना है। हरएक द्रव्य अपने-अपने प्रमेयत्वगुण के स्वामी हैं । प्रमेयत्वगुण का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव चारों ही उसका स्वद्रव्य है । अपने-अपने द्रव्य में तन्मय रहता हुआ ही वह प्रमेयत्वगुण परिणमन कर रहा है। ऐसी स्थिति में, ज्ञान में ज्ञेय के रूप में, ज्ञात होने वाले द्रव्यों के प्रमेयत्वगुण की पर्याय भी, अपने क्षेत्र को छोड़कर ज्ञान तक पहुँच नहीं सकती; लेकिन फिर भी ज्ञान में ज्ञेय के रूप में परपदार्थ प्रतिभासित होते तो दिखाई देते हैं। अतः ज्ञाताद्रव्य की ज्ञानपर्याय एवं ज्ञेयद्रव्य की प्रमेयत्व पर्याय, दोनों के स्वतंत्र परिणमन होते हुए भी उनकी कार्यप्रणाली किसप्रकार है, यह समझना है ? वास्तविकता तो यह है कि प्रमेयत्वगुण भी अपने द्रव्य में ही कार्यरत है, उसको किसी के भी ज्ञान का विषय बनने के लिए ज्ञाताद्रव्य के सन्मुख नहीं होना पड़ता । इसीप्रकार ज्ञानगुण भी अपने द्रव्य में ही कार्यरत है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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