Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 4
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 159
________________ १५८) ( सुखी होने का उपाय भाग-४ भगवान अरहन्त का आत्मा जो वास्तव में ज्ञानतत्त्व रूप परिणत हो गया है, उसके ज्ञान में ज्ञात ज्ञेयों की स्थिति का विस्तार से विवेचन ज्ञेयतत्त्व प्रज्ञापन में किया है । अरहन्त भगवान के ज्ञान में ज्ञेय तो प्रमाणभूत, द्रव्य-गुण-पर्याय सहित पदार्थ होता है, अकेली पर्याय नहीं । अज्ञानी को पर्याय में ही एकत्वबुद्धि होने से, उसको तो अकेली पर्याय में ही आकर्षण होता है । लेकिन ज्ञानी साधक को आत्मा में अपनापन होकर दृष्टि सम्यक् हो जाने से अपने ज्ञायक को स्व के रूप में मानते हुये, ज्ञान भी सम्यक् हो जाने से द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नयों का जन्म हो जाने से, ज्ञेयों को भी दोनों नयों के माध्यम से यथातथ्य जानता है। फलत: असमानता के अभाव से रागादि की उत्पत्ति नहीं होती द्रव्य को जानते समय, पर्याय गौण रह जाती है और पर्याय के ज्ञान के समय द्रव्य गौण रह जाता है, दूसरे पक्ष का अभाव नहीं होता। ज्ञान में गौण वर्तता रहता है; ऐसा ज्ञानी स्याद्वाद के आश्रयपूर्वक दोनों पक्षों के यथार्थ ज्ञान होने से सहजरूप से भेदज्ञान वर्तता रहता है। दृष्टि सम्यक् होने से श्रद्धा अपेक्षा वह भी ज्ञेयों की स्थिति, अरहंत भगवान के ज्ञान में ज्ञात होने के अनुसार ही मानता है। ऐसा ज्ञानी साधक ज्ञान व ज्ञेय के यथार्थ भेदज्ञान पूर्वक आत्म साधना करता है तो वास्तविक ज्ञानतत्त्व अर्थात् अरहन्त बन जाने के उपायों की चर्चा चरणानुयोग चूलिका में की है। इसप्रकार अज्ञानी को ज्ञानी ही नहीं वरन् परमात्मा बनने का सरलतम उपाय, इस ग्रन्थ राज में प्ररूपण किया है । इसमें एक ओर तो स्व के साथ ही लोकालोक के समस्त ज्ञेयों को एक साथ ही जान लेने के स्वभाव का धारक ज्ञायकस्वभावी ज्ञानतत्त्व और दूसरी ओर उक्त ज्ञान में ज्ञेय के रूप में ज्ञात होने वाले स्व एवं लोकालोक के समस्त द्रव्य ज्ञेयतत्त्व; दोनों के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान कराकर, ज्ञायकभाव में अपनापन तथा ज्ञेयमात्र में परपना स्थापन कराकर ज्ञेयमात्र के प्रति उपेक्षाबुद्धि द्वारा आत्मानुभूति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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