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श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
कथाओं में पात्रों के पूर्वभव-कथा के मुख्य भाग के रूप में उपन्यस्त हुए हैं; परन्तु प्राकृत-कथाओं में पात्रों के पूर्वभव उपसंहार के रूप में विन्यस्त हुए हैं। पालिकथाओं या जातक-कथाओं में बोधिसत्त्व मुख्य केन्द्रबिन्दु हैं, और उनके कार्यकलाप की परिणति प्राय: उपदेश-कथा के रूप में होती है। इस क्रम में किसी एक गाथा को सूत्ररूप में उपस्थापित करके गद्यांश में उसे पल्लवित कर दिया गया है, जिससे कथा की पुष्टि में समरसता या एकरसता का अनुभव होता है। किन्त, प्राकृतकथाओं में जातक-कथाओं जैसी एकरसता नहीं है, अपितु घटनाक्रम की विविधता
और उसके प्रवाह का समन्वयात्मक आयोजन हुआ है। गहराई और विस्तार प्राकृतकथाओं की शैली की अपनी विशिष्टता है। प्राकृत-कथा की महत्ता इस बात में निहित है कि इसके रचयिताओं ने हृद्य और लोकप्रिय किस्सा-कहानी एवं साहित्यिक तथा सांस्कृतिक कलापूर्ण गल्प के बीच मिथ्या प्रतीति के व्यवधान को निरस्त कर दिया है। प्राकृत-कथाकारों ने उच्च और निम्न वर्ग के वैषम्य को भी अपनी कृतियों से दूर कर दिया है। फलत: इनकी रचनाओं में दोनों वर्गों की विशिष्टताओं का सफल समन्वय हुआ है। दूसरी ओर, जो लोग साहित्यिक अभिनिवेश, सांस्कृतिक चेतना और मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मताओं की अपेक्षा रखते हैं, उन्हें भी प्राकृत-कथाओं से कोई निराशा नहीं हो सकती। यह एक बहुत बड़ी बात है, जो बहुत कम कथा-साहित्य के बारे में कही जा सकती है।
व्यापक और गम्भीर सूक्ष्मेक्षिका से सम्पन्न भारतीयेतर विद्वानों ने भी अपने संरचना-शिल्प में सम्पूर्ण भारतीय परम्परा को समाहत करने वाली प्राकृत-कथावाङ्मय की विशालता पर विपुल आश्चर्य व्यक्त किया है। भारतीय साहित्य के पारगामी अधीती तथा ‘ए हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिटरेचर' के प्रथितयशा लेखक विण्टरनित्स केवल इसी बात से चकित नहीं हैं कि प्राकृत-कथा-साहित्य में जनसाधारण के वास्तविक जीवन की झाँकियाँ मिलती हैं, वह तो इसलिए प्रशंसामुखर हैं कि प्राकृत-कथाओं की भाषा में एक ओर यदि जनभाषा की शरीरात्मा प्रतिनिहित है, तो दूसरी ओर वर्ण्य विषय में विभिन्न वर्गों के वास्तविक सांस्कृतिक जीवन का हृदयावर्जक चित्र समग्रता के साथ, मांसल रेखाओं में अंकित है। इसके अतिरिक्त, प्राकृत-कथाकारों की विश्वजनीन अनुभूति का प्रमाण यह भी है कि उनके द्वारा प्रस्तुत अभिव्यक्ति की विलक्षणता, कल्पना की प्रवणता, भावनाओं और आवेगों का विश्लेषण तथा मानव-नियति का भ्राजमान चित्रण-ये तमाम तत्त्व विश्व के कथा-साहित्य की विशेषताओं का मूल्य-मान रखते हैं। सबसे अधिक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि प्राकृत-कथा-साहित्य में सुरक्षित स्थापत्य
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