Book Title: Shraddh Pratikraman Sutram
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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आ.प्र.सू.२७ Jain Educa
॥ ५९ ॥ तो वंतरोवि भग्गो उवसंतो संधिऊण तस्स सिरं । खिष्यं करेह सज्जं किमसज्यं दिवसत्तीए ? ॥ ६० ॥ उक्तञ्च पञ्चमा चतुर्दशशतेऽष्टमोद्देशके - "पभू णं भंते ! सक्के देविंदे पुरिसस्स सीसं सपाणिणा असिणा छिंदित्ता कमंडलुमि पक्खिवितए !, हंता पभू, से कहमिआणि पकरेह ?, गोयमा ! छिंदिआ २ व णं पविग्ववेजा मिंदिआ २ व णं पक्खिवेजा कुट्टिआ २ व णं पक्खिवेजा चुण्णिआ २ व णं पक्खिवेज्जा तओ पच्छा खिप्पामेव पडिसंघाइजा नो चेव णं तस्स पुरिसस्स किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएन "न्ति ॥ मुणिवेसप्प
पुष्टिं तत्तो उवउत्तसासणमुरीए । कयमहिमो हेममहापउमे निविसेइ रायरिसी ॥ ३१ ॥ तो वाणमंतराइसु अइविहिरपुरनरेस्रुवि मिलित्ता । नमिअ निविट्ठेसु इमो सम्मं धम्मं पयासेइ ॥ ६२ ॥ मुक्खस्स परमबीअं | साहइ सामाइअं तु सविसेसं । अणुभूअफलं को वा न परहिअत्थी विसेसह १ ॥ ६३ ॥ वामेइ मुणिं तत्तो स वंतरो झत्ति पत्तसम्मत्तो । लोआवि दुविहधम्मं सम्मं जहसति गिव्र्हति ॥ ६४ ॥ परदुक्खे जे ठविआ तेणत्ते | तेण ताण परसुक्खं । मुक्खं दितेण धुवं पडिअरिओ पुत्रअवराहो ॥ ६५ ॥ एवं सो पुहवीए विहरितु चिरं हरितु अन्नाणं । सन्नाणं भवाणं दितो पत्तो पयं परमं ॥ ६६ ॥ सङ्घप्पहाणं नवमस्स सामाइ आभिहाणस्स वयस्स एवं । फलं मुणित्ता धणमित्तपत्तं, कुणंतु तत्थेव बुहा ! पयत्तं ॥ ६७ ॥
॥ इति सामायिक धनमित्रकथा ||
उक्तं नवमव्रतमिदानीं देशावकाशिकं नाम दशमं शिक्षावतं तु द्वितीयं तच पूर्व योजनशतादिना याव -
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BERCARACALDERA
22020
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