Book Title: Shraddh Pratikraman Sutram
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
॥१॥ कह पुण ते बिंतेगो आरुहमाणाण जीअसंदेहो। तो छिदिऊण मूला पाडिउं ताणि भक्खेमो ॥२॥ बीआह किमम्हाणं तरुणा छिन्नेण अइमहंतेणं? छिंदह महल्लसाहा तइओ बेई पसाहाओ ॥३॥ गुच्छे चउत्थ
ओ पुण पंचमओ बेइ गिण्हह फलाइं । छट्ठो अबेइ पडिआ एए चिय खायहा चित्तुं ॥४॥ दिटुंतस्सोवणओ छिंदह मूलाओ बेइ जो एवं । सो वइ किण्हाए ? साहमहल्ला य नीलाए २ ॥५॥ हवइ पसाहा काऊ ३ गुच्छा तेऊ ४ फला य पम्हा य ५। पडिआ य सुक्कलेसा ६ अहवा अन्नं उदाहरणं ॥६॥ गामवहत्थं चोरा विणिग्गया एगु बेइ घाएह । जं पिच्छह तं सवं दुपयं च चउप्पयं वावि? ॥७॥ बीओ.माणुस २ पुरिसोतईअओ ३ साउहे चउत्थो अ४ । पंचमओ जुज्झंते ५ छट्टो पुण तत्थिमं भणइ ॥८॥ इकं ता हरह धणं बीअं मारेह मा कुणह18 एवं । धणहरणमेव कुबह ६ उवसंहारो इमो तेसिं ॥९॥ सत्वे मारेहत्ति अ वट्टइ सो किण्हलेसपरिणामे । एवं% कमेण सेसा जा चरिमो सुक्कलेसाए ॥१०॥” इति षत्रिंशगाथार्थः ॥३॥ ननु स्तोकस्यापि विषस्य विषमा % गति रित्यल्पोऽपि बन्धः संसारस्यैव हेतुरित्याशङ्कयाह
तंपिहु सपडिक्कमणं सप्परिआवं सउत्तरगुणं च। खिप्पं उवसामेई वाहिव सुसिक्खिओ विजो ॥३७॥ 81 ISI 'तंपिहु सेति तदपि यत्सम्यग्दृष्टिना कृतमल्पं पापं सह प्रतिक्रमणेन षड्विधावश्यकलक्षणेन वर्तत इति ||
सप्रतिक्रमणं, सपरितापं-हा विरूपं कृतमिति पश्चात्तापसहितं, पकारस्य द्वित्वमार्षत्वात् , 'सप्पडिआर'मिति
Jain Education
na
For Private & Personal Use Only
Mujainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474