Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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विषय - परिचय
(४३) ही है । इसी प्रकारका सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानों में जानना चाहिए। यहां ध्यान रखनेकी बात यह है कि इन गुणस्थानों में उपशमसम्यक्त्व और शायिक सम्यक्त्व, ये दो ही सम्यक्त्व होते हैं । यहाँ वेदकसम्यक्त्व नहीं पाया जाता, क्योंकि, वेदकसम्यक्त्वके साथ उपशमश्रेणी के आरोहणका अभाव है । अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशमसम्यक्त्वा जीव सबसे कम हैं, उनसे उन्हीं गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यक्त्वी जीव संख्यातगुणित हैं । आगेके गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, वहां सभी जीवोंके एकमात्र क्षायिकसम्यक्त्व ही पाया जाता है । इसी प्रकार प्रारंभके तीन गुणस्थानों में भी यह अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, उनमें सम्यग्दर्शन होता ही नहीं है ।
जिस प्रकार यह ओघकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार आदेशकी अपेक्षा भी मार्गणास्थान में अल्पबहुत्व जानना चाहिए । भिन्न भिन्न मार्गणाओंमें जो खास विशेषता है, वह प्रथके स्वाध्यायसे ही हृदयंगम की जा सकेगी । किन्तु स्थूलरीतिका अल्पबहुत्व द्रव्यप्रमाणानुगम (भाग ३) पृष्ठ ३८ से ४२ तक अंकसंदृष्टि के साथ बताया गया है, जो कि वहांसे जाना जा सकता है। भेद केवल इतना ही है कि वहां वह क्रम बहुत्वसे अल्पकी ओर रक्खा गया है ।
इन प्ररूपणाओंका मथितार्थ साथमें लगाये गये नकशोंसे सुस्पष्ट हो जाता है ।
इस प्रकार अल्पबहुत्वप्ररूपणाकी समाप्तिके साथ जीवस्थाननामक प्रथम खंडकी आठों प्ररूपणाएं समाप्त हो जाती हैं ।
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