Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 355
________________ १, ८, ३६.] अप्पाबहुगाणुगमे णेरइय-अप्पाबहुगपरूवणं [२५५ पज्जवट्ठियणए अवलंबिज्जमाणे अस्थि विसेसो, सो जाणिय वत्तव्यो । विदियाए जाव सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु सम्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठी ॥ ३५॥ विदियादिछण्हं पुढवीणं सासणसम्मादिविणो बुद्धीए पुध पुध द्वविय सव्वत्थोवा त्ति उत्तं । कुदो ? छण्हमप्पाबहुआणमेयत्तविरोहादो। सव्वेहितो थोवा सव्वत्थोवा । आदि-अंतेसु णेरइएसु णिद्दिद्वेसु सेसमज्झिमणेरइया सव्वे णिहिट्ठा चये, जावसद्दच्चारणण्णहाणुववत्तीदो । जावसदेण सत्तमपुढवीणरइयाण मज्जादत्ताए ठविदाएं, विदियपुढवीणेरइयाणमादित्तमावादिदं । आदी अंता च मज्झेण विणा ण होति ति चदुण्डं पुढवीणेरइयाणं मज्झिमत्तं पि जावसद्देणेव परूविदं । तदो पुध पुध पुढवीणमुच्चारणा ण कदा। सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥३६॥ विदियपुढवीआदिसत्तमपुढवीपज्जंतसासणाणमुवरि पुध पुध छपुढवीसम्मामिच्छादिविणो संखेज्जगुणा, सासणसम्मादिहिउवक्कमणकालादो सम्मामिच्छादिट्ठिउवक्कमणपर्यायार्थिकनयका अवलम्बन करने पर कुछ विशेषता है, सो जानकर कहना चाहिए। (देखो भाग ३, पृ. १६२ इत्यादि।) नारकियोंमें दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ ३५॥ दूसरीको आदि लेकर छहों पृथिवियोंके सासादनसम्यग्दृष्टियोंको बुद्धिके द्वारा पृथक् पृथक् स्थापित करके प्रत्येक सबसे कम हैं, ऐसा अर्थ कहा गया है, क्योंकि, छहों अल्पबहुत्वोंको एक माननेमें विरोध आता है। सबसे थोड़ोंको सर्वस्तोक कहते हैं। आदिम और अन्तिम नारकियोंके निर्देश कर देने पर शेष मध्यम सभी नारकियोंका निर्देश हो ही जाता है, अन्यथा यावत् शब्दका उच्चारण नहीं बन सकता है। यावत् शब्दके द्वारा सातवीं पृथिवीके नारकियोंके मर्यादारूपसे स्थापित किये जानेपर दूसरी पृथि के नारकियोंके आदिपना अपने आप आ जाता है। आदि और अन्त मध्यके विना नहीं होते हैं, इसलिए चार पृथिवियोंके नारकियोंके मध्यमपना भी यावत् शब्दके द्वारा ही प्ररूपित कर दिया गया । इसी कारण पृथक् पृथक् रूपसे पृथिवियोंका नामनिर्देशपूर्वक उच्चारण नहीं किया गया है। नारकियोंमें दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिध्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३६ ॥ दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सासादनसम्यग्दृष्टियोंके ऊपर पृथक् पृथक् छह पृथिवियोंके सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकी संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टियोंके उपक्रमणकालसे सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका उपक्रमणकाल युक्तिसे संख्यात १ आ-कप्रत्योः ‘णेरइया' इति पाठः। २ प्रतिषु — ठविदा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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