Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 430
________________ २१.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, ३२९. अभवसिद्धिएसु अप्पाबहुअं णत्थि ॥ ३२९ ॥ कुदो ? एगपदत्तादो। एवं भवियमग्गणा समत्ता । सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठीसु ओधिणाणिभंगो ॥ ३३० ॥ जधा ओधिणाणीणमप्पाबहुगं परूविदं, तधा एत्थ परूवेदव्वं । णवरि सजोगिअजोगिपदाणि वि एत्थ अस्थि, सम्मत्तसामण्णे अहियारादो । खइयसम्मादिट्ठीसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥३३१॥ तप्पाओग्गसंखेज्जपमाणत्तादो। उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥३३२ ॥ सुगममेदं । अभव्यसिद्धोंमें अल्पबहुत्व नहीं है ॥ ३२९ ॥ क्योंकि, उनके एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है । इस प्रकार भव्यमार्गणा समाप्त हुई। सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अल्पबहुत्व अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ ३३०॥ जिस प्रकार ज्ञानमार्गणामें अवधिशानियोंका अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यहांपर भी कहना चाहिए। केवल विशेषता यह है कि सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, ये दो गुणस्थानपद यहांपर होते हैं, क्योंकि, यहांपर सम्यक्त्वसामान्यका अधिकार है। क्षायिकसभ्यग्दृष्टियोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ ३३१ ॥ क्योंकि, उनका तत्प्रायोग्य संख्यात प्रमाण है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३३२ ॥ यह सूत्र सुगम है। १ अभव्यानां नास्त्यल्पबहुत्वम् । स. सि. १,८. २ सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्यग्दृष्टिषु सर्वतः स्तोकाश्चत्वार उपशमकाः । स. सि. १,८. ३इतरेषां प्रमत्तान्तानां सामान्यवत् । स. सि. १,८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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