Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१३८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ८, ३१९. को गुणगारो ? संखेज्जा समया। मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३१९ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । असंजदसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ३२० ॥ आरणच्चुदरासिस्स पहाणत्तपरियप्पणादो।। असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी॥३२१ ॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचयादो । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३२२ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ३२३ ॥ खओवसमियसम्मत्तादो। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है।
शुक्ललेश्यावालोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३१९ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शुक्ललेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३२०॥
क्योंकि, यहांपर आरण-अच्युतकल्पसम्बन्धी देवराशिकी प्रधानता विवक्षित है।
शुक्ललेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ ३२१ ॥
क्योंकि, उनका संचयकाल अन्तर्मुहूर्त है।
शुक्ललेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥३२२ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शुक्ललेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ३२३ ॥
क्योंकि, वेदकसम्यग्दृष्टियोंके क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है (जिसकी प्राप्ति सुलभ है)।
१ मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ असंयतसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः (१)। स. सि. १, ८.
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