Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 426
________________ ३३६ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ८, ३०८. सुकले स्सिएस तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा' 11 306 11 सुगममेदं । उवसंतकसायवीदरा गछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ३०९ ॥ कुदो ? चउवण्णपमाणत्तादो । खवा संखेज्जगुणा ॥ ३१० ॥ अङ्कुत्तरसदपरिमाणत्तादो । खीण कसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ३११ ॥ सुगममेदं । सजोगिकेवली पवेसणेण तत्तिया चेव ॥ ३१२ ॥ एदं पि सुगमं । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ ३१३ ॥ शुक्लश्यावालों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ ३०८ ॥ यह सूत्र सुगम है । शुक्कलेश्यावालोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३०९ ॥ क्योंकि, उनका प्रमाण चौपन है । शुक्कलेश्यावालों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३१० ॥ क्योंकि, उनका परिमाण एक सौ आठ है । शुक्लेश्यावालों में क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३११ ॥ यह सूत्र सुगम है । शुक्ललेश्यावालों में सयोगिकेवली प्रवेशकी अपेक्षा पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३१२॥ 'यह सूत्र भी सुगम है । शुक्ललेश्यावालोंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ ३१३ ॥ १ शुक्ललेश्यानां सर्वतः स्तोका उपशमकाः । स. सि. १, ८. २ क्षपकाः संख्ये यगुणाः । स. सि. १, ८. ३ सयोगकेवलिनः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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