Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ८, ३०७.] अप्पाबहुगाणुगमे तेउ-पम्मलेस्सिय-अप्पाबहुगपरूवणं
सम्मामिच्छादिट्टी संखेज्जगुणा ॥ ३०४ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेजगुणा ॥ ३०५॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुबोझं । मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३०६॥
को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ, सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ । को पडिभागो ? घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेजाणि पदरंगुलाणि ।
असंजदसम्मादिट्टि-संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सम्मत्तप्पाबहुअमोघं ॥ ३०७॥
जधा ओघम्हि अप्पाबहुअमेदेसिं उत्तं सम्मत्तं पडि, तधा एत्थ सम्मत्तप्पाबहुगं वत्तव्यमिदि वुत्तं होइ।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३०४ ॥
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है ।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३०५॥
___ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। ३०६॥
गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है, जो असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघके समान है ॥३०७॥
जिस प्रकार ओघमें इन गुणस्थानोंका सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यहांपर सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहना चाहिए, यह अर्थ कहा गया है।
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