Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 423
________________ १, ८, २९८.] अप्पाबहुगाणुगमे किण्ह-णील-काउलेस्सिय-अप्पाबहुगपरूवणं [३३३ कुदो ? मणुसकिण्ह-णीललेस्सियसंखेज्जखइयसम्मादिविपरिग्गहादो । उवसमसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २९५ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । कुदो ? गैरइएसु किण्हलेस्सिएसु पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तउत्रसमसम्मादिट्ठीणमुवलंभा। वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २९६ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुगमं । णवरि विसेसो, काउलेस्सिएसु असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ २९७ ॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचयादो। खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २९८ ॥ कुदो ? पढमपुढविहिं संचिदखइयसम्मादिट्टिग्गहणादो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । क्योंकि, यहां पर कृष्ण और नीललेश्यावाले संख्यात क्षायिकसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका ग्रहण किया गया है । कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २९५ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, कृष्णलेश्यावाले नारकियोंमें पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका सद्भाव पाया जाता है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २९६ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। केवल विशेषता यह है कि कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २९७ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल अन्तर्मुहूर्त है। कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यदृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २९८ ॥ क्योंकि, यहां पर प्रथम पृथिवीमें संचित क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका ग्रहण किया गया है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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