Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 404
________________ ३१४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,८, २०३. संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥२०३ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २०४ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २०५॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २०६ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ २०७॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो, सिद्धेहि वि अणंतगुणो, अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि । परस्पर आपेक्षिक प्रमाण बतलाना मात्र है। इसी हीनाधिकताके लिए देखो भाग ३, पृ. ४३४ आदि। चारों कषायवाले जीवों में प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत असंख्यातगुणित हैं॥२०३॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। चारों कषायवाले जीवोंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ २०४॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। चारों कषायवाले जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ २०५॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। चारों कषायवाले जीवोंमें सभ्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ २०६॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । चारों कषायवाले जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणित हैं॥ २०७॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंसे भी अनन्तगुणा प्रमाण गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। १ प्रतिषु 'संजदासंजदासखेज्जगुणा' इति पाठः। २ अयं तु विशेषः मिथ्यादृष्टयोऽनन्तगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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