Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ६३ ॥
एदं पि सुगमं ।
असंजदसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ६४ ॥ कुदो ! सत्तकोडिसयमेत्तत्तादो । सेसं सुगमं । मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा, मिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ६५ ॥ असंखेज्ज-संखेज्जगुणाणमेगत्थ संभवाभावा एवं संबंधो कीरदे - मणुसमिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा । कुदो ! सेडीए असंखेज्जदिभागपरिमाणत्तादो । मणुसपज्जत्तमसिणी मिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा, संखेज्जरूवपरिमाणत्तादो | सेसं सुगमं ।
असंजद सम्मादिट्ठट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ ६६ ॥
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तीनों प्रकारके मनुष्यों में सासादनसम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ६३ ॥
यह सूत्र भी सुगम है ।
तीनों प्रकारके मनुष्यों में सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित है ॥ ६४॥
क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका प्रमाण सात सौ कोटिमात्र है । शेष सूत्रार्थ
[ १, ८, १३.
सुगम है।
तीनों प्रकारके मनुष्यों में असंयत सम्यग्दृष्टियों से मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित हैं, और मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित हैं ।। ६५ ।।
असंख्यातगुणित और संख्यातगुणित जीवोंका एक अर्थ में होना संभव नहीं है, इसलिए इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिए- असंयतसम्यग्दृष्टि सामान्य मनुष्यों से मिथ्यादृष्टि सामान्य मनुष्य असंख्यातगुणित होते हैं, क्योंकि, उनका प्रमाण जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग है । तथा मनुष्य- पर्याप्त और मनुष्यनी असंयतसम्यग्दृष्टियों से मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनी मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित होते हैं, क्योंकि, उनका प्रमाण संख्यात रूपमात्र ही पाया जाता है। शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ६६ ॥
१ सम्यग्मिथ्यादृष्टयः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ असंयत सम्यग्दृष्टयः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. ३ मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८.
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