Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८१] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, ९४. कुदो ? मणुसेहितो आणदादिसु उप्पज्जमाणमिच्छादिट्ठी पेक्खिय तत्थुप्पज्जमाणसम्मादिट्ठीणं संखेज्जगुणत्तादो । देवलोए सम्मत्तमिच्छत्ताणि पडिवज्जमाणजीवाणं किण्ण पहाणत्तं ? ण, तेसिं मूलरासिस्स असंखेज्जदिभागत्तादो। को गुणगारो ? संखेज्जसमया ।
असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी॥९४॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तकालसंचिदत्तादो। खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ९५ ॥
कुदो ? संखेजसागरोवमकालेण संचिदत्तादो। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । संचयकालपडिभागेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो गुणगारो किण्ण उच्चदे ? ण, एगसमएण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजीवाणं उवसमसम्मत्तं पडिवज्जमाणाणमुवलंभा।
। क्योंकि, मनुष्योंसे आनत आदि विमानोंमें उत्पन्न होनेवाले मिथ्यादृष्टियोंकी अपेक्षा वहांपर उत्पन्न होनेवाले सम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित होते हैं।
शंका-देवलोकमें सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंकी प्रधानता क्यों नहीं है?
समाधान--नहीं, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मूलराशिके असंख्यातवें भागमात्र होते हैं।
उक्त विमानोंमें सम्यग्दृष्टियोंका गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है।
आनत-प्राणत कल्पसे लेकर नवग्रैवेयक तक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि देव सबसे कम हैं ॥ ९४ ॥
क्योंकि, वे केवल अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा संचित होते हैं।
उक्त विमानोंमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं ॥ ९५॥
क्योंकि, वे संख्यात सागरोपम कालके द्वारा संचित होते हैं। गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शंका-संचयकालरूप प्रतिभाग होनेकी अपेक्षा पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार क्यों नहीं कहा है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, एक समयके द्वारा पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र जीव उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होते हुए पाये जाते हैं ।
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