Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८६ ]
छक्खंडागमेजवाण
[ १, ८, १००.
गुणा । तं पणव्वदे ? कारणाणुसारिकज्जदंसणादो मणुसेसु खइयसम्मादिट्ठी संजदा थोवा, वेदगसम्मादिट्ठी संजदा संखेज्जगुणा; तेण तेहिंतो देवेसुप्पज्ज माणसंजदा वि तप्पडिभागिया चेवेत्ति वेत्तव्यं । एत्थ सम्मत्तप्पाबहुअं चेव, सेसगुणड्डाणाभावा । sahi road ? म्हादो चेत्र सुत्तादो |
सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्टिट्ठाणे सव्व
त्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ १०० ॥ खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ वेद सम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥
१०१ ॥ १०२ ॥
दाणि तिणि वित्ताणि सुगमाणि । सव्वसिद्धिम्हि तेत्तीसाउडिदिम्हि असंखेज्जजीवरासी किण्ण होदि ९ ण, तत्थ पलिदोवमस्स संखेज्जदि भागमेत्तंतर म्हि
अपेक्षा वेदकसम्यक्त्वके साथ मरण कर यहां उत्पन्न होनेवाले संयत संख्यातगुणित होते हैं ।
शंका --- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- क्योंकि, 'कारण के अनुसार कार्य देखा जाता है, ' इस न्यायके अनुसार मनुष्यों में क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयत अल्प होते हैं, उनसे वेदकसम्यग्दृष्टि संयत संख्यातगुणित होते हैं। इसलिए उनसे देवों में उत्पन्न होनेवाले संयत भी तत्प्रतिभागी ही होते हैं, यह अर्थ ग्रहण करना चाहिए। इन कल्पों में यही सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है, क्योंकि, वहां शेष गुणस्थानोंका अभाव है ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान — इस सूत्र से ही जाना जाता है कि अनुदिश आदि विमानोंमें केवल एक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान होता है, शेष गुणस्थान नहीं होते हैं ।
सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ।। १०० ॥
उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिक सम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ १०१ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ।। १०२ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं ।
शंका - तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले सर्वार्थसिद्धिविमान में असंख्यात जीवराशि क्यों नहीं होती है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, वहांपर पत्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालका अन्तर है, इसलिए वहां असंख्यात जीवराशिका होना असम्भव है ।
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