Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ७, १.] भावाणुगमे णिदेसपरूवणं
[१८९ सो ठाणदो अट्टविहो, वियप्पदो एक्कवीसविहो। किं ठाणं? उप्पत्तिहेऊ द्वाणं । उत्तं च
गदि-लिंग-कसाया वि य मिच्छादसणमसिद्धदण्णाणं ।
लेस्सा असंजमो चिय होति उदयस्स हाणाई ॥ ६ ॥ संपहि एदेसि वियप्पो उच्चदे- गई चउव्विहो णिरय-तिरिय-णर-देवगई चेदि । लिंगमिदि तिविहं स्थी-पुरिस-णqसयं चेदि । कसाओ चउबिहो कोहो माणो माया लोहो चेदि । मिच्छादसणमेयविहं । असिद्धत्तमेयविहं । किमसिद्धत्तं ? अट्ठकम्मोदयसामण्णं । अण्णाणमेअविहं । लेस्सा छबिहा । असंजमो एयविहो । एदे सव्वे वि एक्कवीस वियप्पा होति' (२१)। पंचजादि-छसंठाण-छसंघडणादिओदइया भावा कत्थ णिवदंति ? गदीए, एदेसिमुदयस्स गदिउदयाविणाभावित्तादो। ण लिंगादीहि वियहिचारो, तत्थ तहाविहविवक्खाभावादो।
है, वह स्थानकी अपेक्षा आठ प्रकारका और विकल्पकी अपेक्षा इक्कीस प्रकारका है।
शंका-स्थान क्या वस्तु है ? समाधान-भावकी उत्पत्तिके कारणको स्थान कहते हैं । कहा भी है
गति, लिंग, कषाय, मिथ्यादर्शन, असिद्धत्व, अज्ञान, लेश्या और असंयम, ये औदयिक भावके आठ स्थान होते हैं ॥ ६॥
अब इन आठ स्थानोंके विकल्प कहते हैं । गति चार प्रकारकी है- नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति । लिंग तीन प्रकारका है- स्त्रीलिंग, पुरुषलिंग
और नपुंसकलिंग। कषाय चार प्रकारका है-क्रोध, मान, माया और लोभ । मिथ्यादर्शन एक प्रकारका है । असिद्धत्व एक प्रकारका है।
शंका-असिद्धत्व क्या वस्तु है ? समाधान-अष्ट कर्मोंके सामान्य उदयको असिद्धत्व कहते हैं।
अशान एक प्रकारका है। लेश्या छह प्रकारका है। असंयम एक प्रकारका है। इस प्रकार ये सब मिलकर औदयिकभावके इक्कीस विकल्प होते हैं (२१)।
शंका-पांच जातियां, छह संस्थान, छह संहनन आदि औदयिकभाव कहां, अर्थात् किस भावमें अन्तर्गत होते हैं ?
समाधान-उक्त जातियों आदिका गतिनामक औदयिकभावमें अन्तर्भाव होता है, क्योंकि, इन जाति, संस्थान आदिका उदय गतिनामकर्मके उदयका अविनाभावी है। इस व्यवस्थामे लिंग, कषाय आदि औदायिकभावोसे भी व्यभिचार नहीं आता है, क्योकि, उन भावों में उस प्रकारकी विवक्षाका अभाव है।
१ गतिकषायलिंगमिष्यादर्शनासानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुरुध्येकैकैकैकषड्भेदाः । त. पू. २, ६.
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